सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

रमन का गुस्सा...


प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह इन दिनों बात-बात पर गुस्से में आ जाते हैं । अपने कार्यक्रम में सवाल पूछने वालों को शराबी कह देते हैं तो कांग्रेस के विरोध पर भड़क जाते हैं । केन्द्र सरकार के कैश योजना पर तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहूंच गया है । और के इसे लेकर आर-पार की लड़ाई करने आमदा है लड़ाई तो एफडी आई लागू करने को लेकर भी है । चुनावी तैयारी में जुटे रमन सिंह के गुस्से का कारण कुछ मंत्रियों की करतूत भी है और गुस्सा बैस व साय के रवैये को लेकर भी है । कहा जा रहा है कि केन्द्र पर गुस्से की वजह भाजपा के वे नेता है जो गाहे-बगाहे उनकी सल्तनत पर उंगली उठाने से बाज नहीं आते ।
वीसी का दंभ...
यह तो खोदा पहाड़ निकली चुहिया की कहावत को ही चरितार्थ करता है । वरना इस बार युवा कांग्रेस के चुनाव में वीसी शुक्ले के समर्थकों को इस तरह हार का सामना नहीं करना पड़ता । भाजपा के बजाय जोगी से निपटने की राजनीति में उलझ जाने वाले वीसी शुक्ल के समर्थक अब उन्हें धीरे-धीरे छोडऩे लगे हैं । लेकिन वे इसका अहसास करना ही नहीं चाहते । वे तो उन लोगों से मिल कर भी खुश है जो  जोगी विरोधी है लेकिन वोरा, महंत या पटेल के लोग हैं । ऐसे में सिर्फ जोगी विरोधी राजनीति से दंभ भरने से क्या हासिल होगा यह सब समझते हैं ।
मुंहफट-मूणत
भाजयुमों की राजनीति से प्रदेश में लालबत्ती तक का सफर करने के बाद भी प्रदेश के उद्योगमंत्री की शैली में कोई फर्क नहीं है वे आज भी अपनी ईमानदारी का ढोल बजाना न तो बंद करते हैं और न ही भाजयुमों स्टाईल में बात करना ही बंद करते हैं । मुख्यमंत्री के करीबी होने की वजह से कार्यकर्ता सामने भले ही कुछ नहीं कहते लेकिन पीट पीछे जिस तरह की बातें हो रही है वह मूणत के लिए ठीक नहीं है और लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि इस बार यह मुंहफट शैली भारी पड़ सकता है ।
किरणमयी की दिक्कत ...
राजधानी के महापौर किरणमयी की मुसिबत का अंत होते नहीं दिख रहा है कभी सरकार की तरफ से तो कभी पार्टी की तरफ से आये दिन लफड़ा चलते ही रहता है । निगम कमिश्रर से उनकी लड़ाई भी थमने का नाम नहीं ले रहा है अब पार्षद उपचुनाव में भी वे कम परेशान नहीं रही कांग्रेस का एक गुट जहां उनके साथ था तो दूसरा गुट भीतरघात करने आमदा था । उपर से भाजपा के मंत्री तक चुनाव में कूद पड़े थे । ऐसे में उनके लिए मुसिबत यह है कि चुनाव परिणाम को लेकर दिक्कत न हो जाए ।
अमर का विदेश प्रेम...
प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल का विदेश प्रेम इन दिनों चर्चा में है । कहा जाता है कि जब भी वे विदेश यात्रा का प्लान बनाते है कोई न कोई ऐसा मामला आ जाता है जिससे उनका विदेश प्रवास विवादों में पड़ जाता है ।
इस बार भी आंख फोड़वा कांड की वजह से उनकी विदेश प्रवास विवादों में पड़ गया । सरकार को जवाब देते नहीं बन रहा था ।
अब तो लोग कहने लगे है कि जब से स्वास्थ्य विभाग संभाले हैं कुछ न कुछ हो ही रहा है । गर्भाशय कांड से लेकर आंखफोड़वा कांड का जवाब देना वैसे भी मुश्किल है ऐसे में विदेश प्रेम कहीं भारी न पड़ जाए ।

रमन का बौखलाना ...



छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह पर जब से कोयले की कलिख लगी है उनकी भाषा ही बदल गई है। अपनी साफ छवी व संयकित भाषा की वजह से अन्य नेताओं से अलग छवि वाले रमन सिंह का इन दिनों भाषा पर नियंत्रण नहीं रह गया है। कभी वे बच्चों की गलतियों पर मां- बाप को दोषी करार देते हैं तो कभी दुर्घटना के लिए सुन्दर गर्ल फं्रे ड पर टिप्पणी करते है। कहते है कि ये दोनों बाते उनके दिल से निकली थी लेकिन हाल मे ही कांगे्रस के नामोनिशान मिटा देने की बात हैरान कर देने वाला है। कुछ इसे सांमती सोच बता रहे हैं तो कुछ इसे सत्ता का घमंड कहने से भी नहीं चूक रहे है। हालांकि कांग्रेस इसे कोल घोटाले की बौखलाहट बता रही है लेकिन राजनीति के जानकारों का कुछ और ही कहना है और इसे स्वस्थ्य राजनीति के लिए ठीक नहीं माना जा रहा है। ऐसी भाषा के उपयोग से चुनाव वैतरणी पार होगी या नहीं यह भी चर्चा का विषय है।
कंवर फिर बोले...
कभी मुख्यमंत्री के जिले के कलेक्टर को दलाल और एस पी को निकम्मा कहने वाले आदिवासी नेता व प्रदेश के गृहमंत्री ननकी राम कंवर कब क्या बोल जाये भरोसा नहीं रहता विधानसभा पें दस-दस हजार में थाना बिकने की बात कहकर शराब माफियाओं पर गुस्सा जाहिर करने वाले ननकी राम कंवर इस बार मुख्यमंत्री की मौजूदगी में शराब बंदी की वकालत करते हुए यहां तक कह दिया कि शराब ठेके में करोड़ों रूपये की बंदर बांट होती है। उनका बयान क्या सचमुच शराब बंदी के लिए है या फिर वे ड़ॉ. रमन सिंह के इन दिनों शराब ठेकेदार बल्देव सिंग भाटिया की नजदीकी को लेकर नाराज है, यह चर्चा का विषय है।
राजेश का राज...
तरूण चटर्जी के दंम की वजह से चुनाव जीतने वाले प्रदेश के उद्योग मंत्री राजेश मूणत अपनी गंदी जुबान के लिए भी खासे चर्चित है। और कहा जाता है कि वे हर बार मुख्यमंत्री ड़ॉ. रमन सिंह की वजह से बच निकलते है। घापले बाजी व भ्रष्टाचार के मामले लोकायुक्त तक पहुंच गया लेकिन उनका कुछ नहीं बिगड़ा लेकिन इस बार धमतरी जिले के दोनर-बोरसी मार्ग के पुलिया ठेके में भ्रष्टाचार को लेकर वे फिर चर्चा में है। जब वे पी डब्ल्यू डी मंत्री थे तब के इस मामले में करोड़ों रूपये का खेल का आरोप उन पर लग रहा है। अपे चहेते ठेकेदार को ठेका दिलाने के आरोप पर क्या होगा कहना कठिन है लेकिन परिवहन में रिश्तेदारों की नियुक्ति भी चर्चा में है।
पटेल की मुसिबत
भाजपा से दो चार करने के  लिए कांग्रेस की कमान संभालने वाले नंद कुमार पटेल की दिक्कत यह है कि वे जब भी जोर शोर से भाजपा पर वार करने आगे बढ़ते है पार्टी के भीतर की अशांति उन्हें चार कदम पीछे लौटने मजबूर कर देती है। कभी जोगी को शांत करों तो वीसी और वीसी मान गए तो मोतीलाल वांटा का पारा सामने आ जाता है। इस बार वे सबको निपटाकर फिर तैयारी में जुटे तो इस बार नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे और बदसहीन कुरैशी के झगड़े सामने आ गये। और प्रदेशप्रभारी हरिप्रसाद ने चौबे की जांच के लिए समिति बनाने कह दिया है। यानी एक नई मुसिबत, हालांकि वे इसे हाईकमान का मामला कहकर पल्ला झाडऩे में लगे है। लेकिन विरोधी सक्रिय हैं ।
बैस की पलटी...
रायपुर विकास प्राधिकरण की कमल विहार योजना का कल तक विरोध करने वाले सांसद रमेश बैस ने अब इस योजना को अच्छा बताकर सब  को चौंका दिया। कहते है कि इस योजना के चलते भाजपा को नगर निगम हारना पड़ा था ऐसे में रमेश बैस की पलरी मारने को लेकर कई तरह की चर्चा है कोई इसे राविप्रा अध्यक्ष सुनील सोनी का खेल बता रहा है तो कोई कुछ और मामला जो भी हो लेकिन बैस की पलटी से भाजपा की अन्दरूनी राजनीति पर असर तो पड़ेगा ही।
सौदान का सौदा...
भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सौदान सिंह का छत्तीसगढ़ प्रेम किसी से छिपा नहीं है। पैसे लेकर टिकिट बांटने व गुटबाजी करने के आरोप भी उन पर लगते रहे है। लेकिन ताजा बयान तो उनकी मुसिबत बढ़ा दी है। घोटाले को लेकर कांगें्रस पर वोट मांगने का अधिकार नहीं होने की इस टिप्पणी के बाद छत्तीसगढ़ में भाजपा कार्यकर्ता पूछते घूम रहे है। छत्तीसगढ़ में भी तो कोयले से लेकर बांध बेचने के घोटाले है तब वे कैसे वोट मांगे।
देवजी की ठकुराई
यह तो अपना खून-खून दूसरे का पानी की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना अपने क्षेत्र में उद्योगों के लिए जमीन अधिग्रहण को लेकर सरकार को ललकारने वाले धरसींवा के भाजपाई विधायक देवजी भाई पटेल रोगदा बांध बेचने को लेकर सरकार के पक्ष में खड़े नहीं होते ।
अपने विधानसभा क्षेत्र में स्थापित हो रहे उद्योगों की मनमानी पर सरकार को ललकारने वाले देवजी भाई पटेल राजनीति के माहिर खिलाड़ी मोन जाते है । क्षेत्र के लोगों के गुस्से पर अपना गुस्सा दिखाकर भले ही वे अगली विधानसभा चुनाव जीतने की जुगाड़ लगा रहे हो लेकिन सच तो यह है कि रोगदाबांध बेच दिये जाने व वहां के उद्योगों की मनमानी पर उन्हें इतना गुस्सा कभी नहीं आया । यहां तक कि रोगदा बांध को बेचने को लेकर कटघरे में खड़ी सरकार को बचाने साक्ष्यों की भी अनदेखी की गई ।
26/11 के शहीदी दिवस पर परिवार के लोगों के द्वारा पाकिस्तानी गायक अतीफ असलम के जश्न कार्यक्रम से आलोचन के पात बने राज्य सरकार के दमदार मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की  पार्षद चुनाव में प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है । कहते हैं कि महापौर चुनाव में भाजपा को मिली करारी हार ने उनकी बैचेनी बड़ा दी है । कल तक मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोने वाले बृजमोहन अग्रवाल की जमीन खिसकने लगी है । कई समर्थक उन्हें छोड़ चुके है जबकि दूसरी पारी में मंत्री बनने के बाद तो उनमें घमंड आ जाने की भी चर्चा आम हो गई है । चर्चा तो पूरे कूनबे का पैसों को लेकर भी है और कहा जा रहा है कि पैसों की भूख ने उनके दुश्मनों की संख्या में ईजाफा कर दिया है । ऐसे में मुख्यमंत्री के दावेदार को पार्षद उपचुनाव में गलियों का खाक छानते देखने में कई लोगों को मजा भी आ रहा है । कोई इस ेेेे असली औकात बता रहा है तो कोई इसे भविष्य । लेकिन बुजुर्ग की टिकिट को लेकर युवा भाजपाईयों का आक्रोश चुनाव में निकल गया तो दिक्कत हो जाएगी । समर्थक भी दुखी है कि आखिर इतने बड़े नेता को इसकी क्या जरूरत थी ।
पटेल  की दुविधा...
गृह मंत्री जैसे पद पर रहने वाले प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंद कुमार पटेल की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उन्हें आज भी कोई नेता नहीं मानता, प्रदेश में जब भी नेताओं की गिनती होती है जोगी वीसी और वोरा के नाम की ही चर्चा होती है ऐसे में आन्दोलन का प्रभाव भी उतना नहीं पड़ रहा है और भाजपा से सेटिंग की चर्चा थमने का नाम ही नहीं ले रहा है । ये अलग बात है कि वे पूरी ताकत से भाजपा के खिलाफ रण्नीति बना रहे है लेकिन मामला फिर वहीं का वहीं रह जाता है यानी रात भर चले अढ़ाई कोस ।
वर्मा की बहादूरी...
विधानसभा के सचिव देवेन्द्र वर्मा के आगे किसी की नहीं चलती । यहां तक कि सरकार भी उनसे बैर मोल लेना नहीं चाहते । कहते हैं कि संघ में उनकी पकड़ का अहसास प्रदेश सरकार के कई मंत्रियों को है इसलिए उन पर लगने वाले आरोपों की जांच तो दूर उनसे घोषित रिकवरी भी वसुल नहीं की जा रही है । उनकी करतूतों पर परदा डालने की कोशिश में सरकार बदनाम हो रही है भाजपाई हैरान है लेकिन दादागिरी बदस्तुर जारी है ।
लता की परेशानी ...
नक्सलियों से संबंध के आरोप से परेशान प्रदेश सरकार की एक मात्र युवा महिला मंत्री लता उसेंडी की दिक्कत थमने का नाम ही नहीं ले रहा है । इधर नक्सलियों से संबंध का आरोप तो खेल विभाग में शराब ठेकेदार के बढ़ते हस्तक्षेप ने उनकी मुसिबत और बढ़ा दी है । आजकल हर आयोजन में शराब ठेकेदार की मंच पर उपस्थिति से वे हैरान ही नहीं परेशान भी है लेकिन शराब ठेकेदार की मुख्यमंत्री से सीधे संबंध होने के कारण वे कुछ बोल नहीं पा रही है । लेकिन इसके दुस्परिणाम ने उनकी चिंता जरूर बढ़ा  दी है ।

बैस का बुखार .........


6 बार से रायपुर के संासद रमेश बैस को इन दिनों पुलिस पर बहुत गुस्सा आ रहा है । और उन्होंने सीधे तौर पर कह दिया है कि यदि सरकार ने पुलिस को नियंत्रित नहीं किया तो इसके परिणाम ठीक नहीं होंगे । बैस की यह चिंता भाजपा के प्रति है या भतीजे की पिटाई का दर्द है यह तो वही जाने लेकिन इससे पहले वे पुलिस की ज्यादती पर कमी नहीं बोले । थानों में हत्या जैसी घटना पर भी वे खामोश रहे । गृहमंत्री जजकी राम कंवर के दर्द पर भी उनकी चुप्पी कायम रही यहां तक कि प्रदेश में बढ़ते अपराध को भी वे नजर अंदाज करते रहे लेकिन भतीजे की पिटाई के बाद उन्हें पता चला कि पुलिस नियंत्रण से बाहर हो चुक ी है । हालांकि पिटाई करने वाला सिपाही तत्काल निलंबित कर दिया गया लेकिन बैस का गुस्सा कम नहीं हुआ है । अब जब तक पिटाई का दर्द रहेगा गुस्सा तो रहेगा ही ।
चौबे की मुसिबत ....
निर्विवाद और मिठलबरा के नाम से चर्चित विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे की मुसिबत थमने का नाम ही नहीं ले रहा है । पहले आरोप लगा कि वे रमन मंत्रिमंडल के 14 वे मंत्री है फिर बदरूदिन कुरैशी ने आरोप मढ़ दिया और अब कार्यकर्ताओं को प्रताडि़त करने का आरोप उन पर लग रहा है । हालत यह है कि उनके खिलाफ सारे आरोप सार्वजनिक रूप से लगने लगे है । साजा विधानसभा में एक छत्र राज कायम करने में कोई कसर बाकी नहीं रखने वाले रविन्द्र चौबे के खिलाफ बन रहे इस माहौल में किसका हाथ है यह तो वही जाने लेकिन राजनीति के जानकारों का कहना है कि जब से वे खेमा बदले है मुसिबत शुरू हुई है ।

सरोज की सनक


छात्र राजनीति से भाजपा की राजनीति करते हुए संसद की सीढ़ी चडऩे वाली दुर्ग की सांसद सरोज पाण्डे की सनक तो छिंदवाड़ा के बहुचर्चित उस चुनाव में ही सामने आ गई थी जिसमें कमलनाथ व सुन्दरलाल पटवा का मुकाबला था । लेकिन पिछले दिनों टोल प्लाजा पर उनका गुस्सा फूट पड़ा और उसके चढ़ते पारे की चर्चा गली मोहल्ले तक जा पहुंची और अब गली को ही कब्जा करने को लेकर उनकी सनक फिर सुर्खियों में है। सौदान सिंह खेमें की इस युवा नेत्री से वैसे तो अच्छे-अच्छे खौफ खाते है  । यही वजह है कि उनके सड़क कब्जे को लेकर जिला प्रशासन ही नहीं आम आदमी भी खामोश रह गये लेकिन एक स्कूली छात्रा ने जिस तरह से हिम्मत दिखाई है उससे सरोज पाण्डे के कारनामें सामने आ गए । अब देखना है कि वह खुद सड़क का कब्जा छोड़ती है या जिला प्रशासन इस कब्जे को तुड़वाता है वरना 2014 में जनता कुछ और ही कुछ छुड़वा देगी ।
सैया भये कोतवाल
तब बिरजू काहे डरें ...
26/11 को पाकिस्तानी गायक के कार्यक्रम को लेकर पार्टी में बृजमोहन अग्रवाल विरोधी लाम बंद हो गए है । इस आयोजन से पार्टी की हो रही थू-थू की शिकायत संघ से कर दी गई है लेकिन बिरजू ऐसी शिकायतों की परवाह करते तो आयोजन ही नहीं करते वैसे भी उनकी शैली  पार्टी से अलग है और जब बड़े भाई गोपाल अग्रवाल ही रायपुर में संघ को संभाल रहे हो तो भला उनका कोई क्या बिगाड़ सकता है । आखिर संघ प्रमुख मोहन भागवत को भी तो गोपाल ही चाहिए ।
कहीं पे निगाहें
कहीं पे निशाना
अपनी प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ रहे प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी के साथ जन समर्थन भरपुर है लेकिन राजनीति में यह जरूरी नहीं है । खासकर कांग्रेस की राजनीति तो जन समर्थन नहीं हाईकमान से चलती है आपके साथ कितनी भी जनता हो यदि हाई कमान नहीं तो कोई मतलब नहीं ऐसे में गुस्सा बाहर आया स्वाभाविक है और धमतरी के व्यंग्य को इसी रूप में देखा जा रहा है । अब होरा को भी सोचना होगा कि ज्यादा महंत-महंत का अलाप से फायदा है या नुकसान ।
घर के जोगी ...
छत्तीसगढ़ वालों के लिए भले ही रायपुर के सांसद रमेश बैस घर के जोगी जोगड़ा हो लेकिन भाजपा की केन्द्रीय राजनीति में उनकी दमदारी का लोहा मानने वालों की कमी नहीं है भले ही उनके सांसद बनने को लेकर मजबूरी का नारा लगता रहा हो लेकिन दिल्ली में तो उन्हें दमदार ही माना जाता है आखिर दमदार क्यों न हो । छत्तीसगढ़ की राजनीति के सबसे ताकतवर वीसी शुक्ल व श्यामाचरण शुक्ल को लाख-लाख भर से हराने के अलावा वे 6 बार सांसद है ।
वीसी फिर घेरे में...
यह तो मेरी मर्जी वाली बात है वरना जब कांग्रेस के सब नेता भाजपा की करतूतों का विरोध कर रहे है और छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विधाचरण शुक्ल ऐसे आयोजन में नहीं जाते जो विवादास्पद होने के साथ-साथ भाजपा के मंत्री परिवार द्वारा आयोजित है वह भी 26/11 के दिन, जब समूचा देश मुंबई में हुए शहीदों को श्रृधंजलि दे रहा हो । ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि बृजमोहन की जीत में कांग्रेस के नेताओं का कितना प्रभाव रहता है ।

मंत्री मूणत की मूर्खता


एक तरफ साल भर बाद होने वाली विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा सरकार फंूक-फूंक कर कदम उठा रही है वहीं प्रदेश सरकार के उद्योग मंत्री बार-बार ऐसी गलती कर रहे है जिससे पार्टी को गंभीर परिणाम भुगताने पड़ सकते है । ताजा मामला नगर निगम मुख्यालय के सामने सिटी बस उढ़घाटन समारोह का है । कहते हैं पुरानी आदतें नहीं जाती और राजनीति में धैर्य जरूरी है यही वजह है कि जैसे ही मंत्री मूणत को विरोध कर रहे कांग्रेसियों से धक्का लगा उनका धैर्य जाता रहा और भाजयूमों की राजनीति उबाल मारने लगी और लगे बकने-झकने । इस दौरान उन्हौंने इस बात की परवाह भी नहीं की कि उनके इस गाली गलौज से न केवल उनका बल्कि पार्टी को भी नुकसान उठाना पड़ सकता है ।
समुद्र सिंह की सुरसुरी
संविदा पर नियुक्त आबकारी विभाग के ओ एस डी क्या ठाकुर राज की वजह से नौकरी पर बने हुए हे यह तो मुख्यमंत्री ही जाने लेकिन जिस तरह से सरकार उन पर  मेहरबान है वह देखते ही बनता है । संविदा पर काम करने के बावजूद परमिट से लेकर आबकारी ठेके के महत्वपूर्ण दस्तावेजों पर उनके हस्ताक्षर होते है जिन पर नियमानुसार केवल पूर्ण कालिक असफरों के ही दस्तखत होते है । अब ये दस्तावेज अवैध माने जाने चाहिए लेकिन उनका दावा है कि ठाकुर राज में उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता क्योंकि  लक्ष्मी की कृपा तो सभी को चाहिए ?
रमन भी सपनों का सौदागर ...
छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने स्वयं को सपनों का सौदागर कहा था इन दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी सपनों का सौदागर बन रहे हैं । कालिख पूते चेहरे में चमक के लिए नई राजधानी को चमकाने में लगे है । देश भर के उद्योगतियों के सामने उन्होंने अपने सपने की राजधानी को चमकाने में लगे है। देश भर के उद्योगपतियों के सामने उन्होंने  अपने सपने क ी राजधानी को दिखाने पूरा ताम झाम किया। रोगदा बांध से लेकर जमीन पाताल को उद्योगों के लिए खोलने का सपना पूरा करने उन्होंने जिस तरह से इन्वेस्टर मीट का आयोजन में करोडों फूं के उसे असली जाया पहनाने की कोशिश में आगे उद्योगों को और सुविधा देने का सपना भी देखा जा रहा है।
वीसी का विलाप
कभी अविभाजित मध्यप्रदेश ही नहीं के न्द्र की राजनीति में प्रभावशाली माने जाने वाले कांग्रेसी नेता विद्याचरण शुक्ल इन दिनों अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। यही वजह है कि वे अपनी अहमियत साबित करने कभी दौरा करते हैं तो कभी पार्टी के पदाधिकारियों से गलबहियां करते है। पिछले दिनों तो वे कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल को कांग्रेसी मानने से ही मना कर जिंदल के खिलाफ बिगुल फूं क दिया यह अलग बात है कि उन्हें रायगढ़ से उल्टे पांव लौटना पड़ा। रायगढ़ में हुए विरोध से वी सी की राजनीति में क्या फर्क पड़ेगा यह कठिन है लेकिन अब वे अजीत जोगी के भाषण को लेकर नाराज है।
बृजेन्द्र की बहादूरी.......
मुख्यमंत्री सचिवालय से लेकर आवास तक अपनी मजबूत पकड़ के लिए चर्चित बृजेन्द्र कुमार से भले ही पत्रकार नाराज चल रहे हो लेकिन उनकी सेहत में हमसे कोई फर्क नहीं पड़ता। जनसंपर्क की अपने खासियत यह है वे विपरित परिस्थितियों में भी माहौल अपने पक्ष में कर लेते हैं अब वे नई राजधानी के नये मंत्रालय के उस सबसे बड़े कक्ष में बैंठेंगे जिसे पहले मुख्यमंत्री के लिए बनाया गया था। लेकिन वास्तु के खेल ने मामला बिगाड़ दिया और मुख्यमंत्री को यह बड़ा कक्ष की बजाय बृजेन्द्र कुमार वाले कक्ष में बैठना पड़ रहा है।

चौबे की चौधराहट...
कहते है राजनीति में सब कुछ संभव है तभी तो कभी अजीत जोगी के खास अजीज रहे छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे का जोगी से छत्तीस का आंकड़ा हो गया है। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद विधान सभा में कांग्रेस दल को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश में प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल से भी उनकी भिडं़त जग जाहिर है अब उनकी महत्वाकांक्षा ने एक बार फिर उड़ान भरनी शुरू कर दी है ऐसे में उनकी चौधराहट की चर्चा कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं से भी सुनी जा सकती है।

रमन का मन ...

रमन का मन ...
मुख्यमंत्री बनने के बाद तीन बार अलग-अलग क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके डॉ. रमन सिंह ने इस बार राजनांदगांव से ही चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी है । चुनाव जीतने की तैयारी में पुत्र अभिषेक को भी लगा दिया है । लेकिन इस बार राह आसान नहीं है । राजनांदगांव के दिग्गज भाजपाई, अशोक शर्मा, खूब चंद पारख और लीलाराम भोजवानी की अलग खिचड़ी पक रही है ऐसे में जिस तरह की खबरें आ रही है वह कालिख पूते चेहरे के लिए बेचैन करने वाला हे अब देखना है कि इस बार वे राजनांदगांव से ही चुनाव लड़ेगे या पहले की तरह फिर कोई क्षेत्र संभालेगे ।
सुनील की कौन सुने ?
1979 बैच के आई एएस अधिकारी सुनील कुमार ने जब छत्तीसगढ़ में मुख्यसचिव का पद संभाला तो उनकी योग्यता, ईमानदारी और सादगी के कसीदे लोगों के बीच चर्चा में थे लेकिन जिस तरह से दागी अफसरों को महत्वपूर्ण पदो पर बिठाया जा रहा है उसके बाद तो चर्चा यह होने लगी है कि आखिर ये क्या हो गया है । उनकी चुप्पी को लेकर जिस तरह की चर्चा है उसके बाद तो यही निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि उनकी कोई नहीं सुन रहा है ।
सुपर मुख्यमंत्री
कहने को तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह है लेकिन प्रशासनिक हलकों में चल रही चर्चा पर भरोसा करें तो यहां एक सुपर मुख्यमंत्री भी है । जी हाँ. मुख्यमंत्री के अर्जा सचिव अमन सिंह को ही सुपर मुख्यमंत्री कहा जा रहा है । अपनी नियुक्ति को लेकर विवाद में रहने वाले अमन सिंह की धाक के सैकड़ों किस्से गली मोहल्ले में सुनाई पडऩे लगा है  किस्सों में अब यह भी जोड़ा जा रहा है कि जोगी शासन के हीरो आर एल एस  यादव को कैसे रातो रात भागना पड़ा था ।
पटेल की उठा पटक .............
यह तो सूत न कपास जुलाहों में लठ्ठम-लठ्ठा की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना मुख्यमंत्री बनने कांग्रेस में इस तरह की उठापटक अभी से शुरू नहीं हो जाती । भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मुहिम चलाने की बजाय पार्टी में ही मुख्यमंत्री के दावेदारों के खिलाफ चल रही उठा पटक में जब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल शामिल हुए और दिल्ली तक निपटाने की शिकायत हुई तो कांग्रेस की किरकिरी होना स्वाभाविक है ।

सौदान बने सौदागर ............
कहा जाता है कि भाजपाई को सत्ता तक पहुंचाने और सत्ता का नकेल अपने हाथ में लेने आर एसएस ने संगठन मंत्री का पद ईजाद किया है लेकिन छत्तीसगढ़ में सौदान सिंह को लेकर जिस तरह की चर्चा छिड़ रही है वह न तो आर एसएस के लिए ठीक है और न ही भाजपा के भविष्य के लिए उचित माना जा सकता है । इन दिनों सौदान सिंह के महल नुमा घर की जिस तरह से चर्चा चल रही है और इसके चित्र भाजपाईयों द्वारा बांटे जा रहे है उससे तो उन्हें सौदागर कहने वालों की कमी नहीं है । कहा जा रहा है सौदान सिंह कभी भी सरकार के लिए मुसिबत बन सकते हैं ?
छत्तीसगढिय़ा कहां गये...
वैसे तो राजधानी की महापौर किरण नायक की मुसिबतें तो उनके महापौर बनने के बाद से ही शुरू हो गई थी भी सरकार के साथ कर्मचारियों को लेकर पंगा हो रहा है तो कभी इंडोर स्टेडियम में कब्जे को लेकर उन्हें कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है । पार्टी संगठन से भी उनका विवाह सभापति बनाने को लेकर जो शुरू हुआ था वह थमने का नाम नहीं ले रहा है। शहर कांग्रेस अध्यक्ष इंदर चंद घाड़ीवाल से तो उनका छत्तीस का आंकड़ा था ही अब पाटा कांड के बाद से वे मोती लाल वोरा समर्थकों के निशाने पर आ गये है।
इतने पर भी उनकी मुसिबतें कम नहीं हो रही है और उनमें विरोधी अब उनका प्रचार छत्तीसगढिय़ा विरोधी नेता के रूप में करने लगे है, विरोधियों को कहना है कि छत्तीसगढिय़ा राजनीति की वकालत करने वाली महापौर को गैर छत्तीसगढिय़ा मनोज मंडावी को अध्यक्ष बनाने की क्या मजबूरी है। क्या कांग्रेस के तीन दर्जन पार्षदों में उन्हें छत्तीसगढिय़ा नजर नहीं आता। देखना है किरण मयी नायक के पास क्या जवाब होगा?