शनिवार, 6 जुलाई 2024

कमाहूँ नहीं त काला खाहूँ…

 कमाहूँ नहीं त काला खाहूँ…



साम्प्रदायिकता के सहारे चुनाव जीतकर विधायक बने ईश्वर साहू के बारे में कहा जाता है कि वे शुरू से ही खाटी भाजपाई रहे हैं और पेलिहा संग पंगनहा हारे की तर्ज पर उनका चाल-चलन गांव से लेकर पूरे विधानसभा में चर्चित होने लगा है लेकिन अब वे भी खाटी भाजपाई की तरह पूरे प्रदेश में फेमस हो गये है तो उसकी वजह उन पर लगने वाला वह आरोप है जिससे भाजपा के सभी विधायक ही नहीं पार्टी भी सकते में हैं।

पार्टी ने साजा विधानसमा से दिग्गज कांग्रेसी रविन्द्र चौबे  के खिलाफ जब ईश्वर साहू को टिकिर दिया था तो उसने भी नहीं सोचा था कि ईश्वर साहू इतने बड़े फ़क़ीर निकलेगे। अब जब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने जनदर्शन लगाना शुरू किया तो पहले ही जनदर्शन में ईश्वर साहू की पोल खुल गई। मामला दबाने के लिए ईश्वर साहू पर दो लाख रुपये लेने का आरोप लग गया।

भले ही सरकार ने इस खबर को प्रमुख मीडिया संस्थानों में छपने से रोक कर पार्टी की इज्जत बचा लिया हो लेकिन खबरे तो लोगों तक पहुंच ही गई है। तो दूसरी ताफ ईश्वर साहू के दूसरे खेल का खुलासा भी होने लगा है।

हालांकि ईश्वर साहू तो पैसों को लेकर उसी दिन चर्चा में आ गये थे, जब विधानसमा चुनाव में खर्च का ब्योरा सामने आया था। उन्होंने खर्च के मामले में विष्णुदेव साय तो छोड़िये मोहन सेठ को भी पछाड़ दिया था, जबकि उसकी कमाई तब 25 हजार रूपये महिना की थी। अब यह पैसा कहाँ से आया, क्या कोई  एजेंसीं जांच करेगी , यह एक अलग सवाल है।

लेकिन पार्टी को समझ नहीं आ रहा है कि मामला जब विधानसभा में उठेगा तो क्या जवाब दिया जाएगा ।

सोमवार, 17 जून 2024

बोया पेड़ बबूल का...

 

बोया पेड़ बबूल का... 

 


यह तो बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना प्रदेश में सबसे ज्यादा वोट से जीतकर विधायक बनने वाले मोहन सेठ को विधायकी से इस्तीफ़ा देना नहीं पड़ता ।

दरअसल जमीन घोटाले से लेकर भ्रष्टाचार के कई तरह के आरोपों से घिरे मोहन सेठ की उल्टी गिनती तो उसी दिन शुरू हो गई थी जिस दिन नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली की, लेकिन सेठगिरी के दम पर राजनीति को साधने में माहिर मोहन सेठ इसलिए बचे रहे क्योंकि पिछली बार विधानसमर में भाजपा हार गई और अब जब भाजपा की प्रदेश में सरकार बन गई तो उन्हें सत्ता से किनारे करने  सांसद का  टिकिट  दे दिया गया ।

कैसे कहते भी हैं कि नरेद्र मोदी अपने विरोधियों को आसानी से छोड़ते नहीं है फिर टेबल के नीचे छिपने  जैसी  स्थिति पैदा करने वाले को वे कैसे छोड़ते ! 

इसलिए  मोहन सेठ को राजनीतिक चाल से ही पीटा गया । मोहन सेठ खून का आँसू बहाकर रह गये ।अभी विधायकी गई है कुछ दिनों में मंत्री पद भी चला जायेगा फिर रह जायेगी सांसदी ।



ऐसे में अब मोहन सेठ की राजनीति का क्या होगा, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है और शायद यही वजह है कि अब मोहन सेठ बंगले में सबसे ज्यादा गूंज  किसी बात की है तो वह है रंगा-बिल्ला और रंगा- बिल्ला के प्रति सेठ के कार्यकर्ताओं का ग़ुस्सा देखते ही बनता है।

इधर इस बात की भी चर्चा है कि मौक़े  का फायदा उठाते हुए मुख्यमंत्री दफ़्तर ने भी मोहन सेठ के विभागों की सैकड़ों फाईले रोक रखी  है जिसमें तबादला - पदोन्नति की फाईल अधिक है। यानी मंत्री जितने भी रहे, काम कुछ होने वाला नहीं।