शुक्रवार, 8 मार्च 2019

बाबा की बांसुरी

बाबा की बांसुरी
मुख्यमंत्री की दौड़ में पिछडऩे वाले टीएस बाबा के अपने जलवे हैं। कहते है कि उनका काम करने का अपना तरीका है। अम्बिकापुर में उनकी शैली अलग तरह की है तो प्रदेश के दूसरे हिस्से में वे काफी सौम्य और शांत प्रवृत्ति के माने जाते हैं। वक्त की नजाकत को पहले से ही भांप जाने का उनका अपना तरीका है लेकिन रिश्तेदारी निभाने और कार्पोरेट प्रेम के आगे वे बेबस हो जाते  हैं। यही वजह है कि विधानसभा चुनाव के दौरान जूदेव परिवार के खिलाफ प्रचार नहीं करने की उनकी बातों से कांग्रेस की किरकिरी हुई थी तो अडानी प्रेम के किस्सों ने उनकी छवि पर असर डालना शुरु कर दिया है। दरअसल अडानी को जो कोल ब्लॉक छत्तीसगढ़ में मिला है उसका एक हिस्सा बाबा के विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत है और यहां आदिवासियों की बेदखली पर बाबा का अलग ही सुर कांग्रेस के लिए संकट का कारण हो सकता है।
गोपाल की गूंज
वैसे तो रामगोपाल अग्रवाल के किस्से कई तरह के है। कभी शुक्ल बंधुओं के करीबी रहे प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल इन दिनों अपने बहनोई की वजह से कांग्रेस के भीतर चर्चे में हैं। चर्चा की वजह बहनोई संतोष अग्रवाल का 141 करोड़ का जीएसटी घोटाला है। लोहा कारोबारी संतोष अग्रवाल का हालांकि रामगोपाल अग्रवाल से सिर्फ रिश्तेदारी वाला ही संबंध है लेकिन चर्चा करने वालों को तो रोका नहीं जा सकता और न ही चर्चा सिर्फ बहनोई तक ही रुकने वाला है इसलिए बहनोई की मदद से लेकर वे किस्से भी बाहर आने लगे है जिनकी चर्चा रामगोपाल अग्रवाल के लिए ही नहीं कांग्रेस के लिए भी असहज है।
कवासी का कमाल
विपरित परिस्थितियों में भी हर बात को हंसी में टाल देने वाले प्रदेश सरकार के आबकारी मंत्री कवासी लखमा इन दिनों चर्चा में है तो इसकी वजह उनके पत्रकारों के साथ हुए कथित विवाद है। पत्रकारों का एक वर्ग अभी भी दावा कर रहा है कि कवासी लखमा ने एक पत्रकार को आरएसएस का बता दिया लेकिन यह लखमा का ही कमाल है कि पत्रकारों का एक बड़ा वर्ग को उसके इस कथन पर भरोसा नहीं है।
नखरा नवीन का
जिस पार्टी ने नवीन मारकण्डेय को जीतने योग्य नहीं समझकर विधानसभा की टिकिट नहीं दी इन दिनों वह आने वाले चुनाव में टिकिट पाने की उम्मीद पाल रखा हो इसके बारे में कोई क्या कह सकता है? आरंग के विधायक रहे नवीन मारकण्डेय को उम्मीद है कि अगली बार उसे टिकिट मिल जायेगी तो इसकी वजह यहां से भाजपा को मिली हार है और वे अपनी राजनीति चमकाने नये-नये तरीके अपनाने लगे है। कहा जाता है कि विश्रामगृह के उद्घाटन को लेकर मचे बवाल को इसी नजरिये से देखा जा रहा है। जबकि पार्टी ने भी इस मामले को लेकर नवीन का खूब उपयोग किया।
चन्द्राकर की चिढऩा
भाजपा राज में दमदारी से पैसा कमाने के लिए चर्चित कुरुद के विधायक  ने कांग्रेस की लड़ाई का फायदा उठाते हुए जीत दर्ज की हो लेकिन लगता है कि पार्टी की हार को वे अब भी पचा नहीं पा रहे हैं। यही वजह है कि गाहे-बगाहे उनकी चिढ़ सामने आ जाती है। हालांकि विवादों में रहे अजय चंद्राकर के लिए बदजुबानी कोई नया नहीं है लेकिन विधानसभा जैसी जगह में भी उनकी यह हरकत को लेकर लोग हैरान है हालांकि बृजमोहन ने बीच बचाव कर मामला शांत कर दिया लेकिन पैसा बोलता है कि चर्चा को विराम नहीं लग पा रहा है।
श्वेता का खेल
भाजपा सरकार में अपने जलवे को लेकर चर्चा में रही पुलिस अधिकारी श्वेता सिंहा इन दिनों फिर सुर्खियों में है तो इसकी वजह उसकी राजधानी वापसी है। भाजपा शासनकाल में विवादों के बाद भी उसकी राजधानी में पोस्टिंग को लेकर कई तरह की चर्चा रही और नौबत तलाक तक आ पहुंची। लेकिन सत्ता बदलते ही जिस तरह से उसका तबादला किया गया था उससे उसकी राजधानी वापसी के रास्ते को बंद समझने वाले को तब झटका लगा जब वह खेल विभाग में राजधानी आ गई। अब लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि श्वेता सिंहा ने आखिर क्या खेल खेला।
तमकना ताम्रध्वज का
अपने शांत स्वभाव के लिए चर्चित प्रदेश के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू इन दिनों सुर्खियों में है तो इसकी वजह उनके अपने बेटों का जलवा है। कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि दो बेटे दो विभाग चला रहे हैं और ताम्रध्वज साहू इस मामले में कुछ कर भी नहीं पा रहे है इसलिए उन्होंने अपना गुस्सा संस्कृति विभाग के फिजूलखर्ची पर उतारा और आयोजन रद्द करने का निर्देश भी दे दिया। यह अलग बात है कि उनकी तमतमाहट के बावजूद यह कार्यक्रम हो गया।
खोदा पहाड़ निकली चुहिया
यह तो खोदा पहाड़ निकली चुहिया की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना भाटापारा के विधायक शिवरतन शर्मा को बजट सत्र में इस तरह मुंह की खानी नहीं पड़ती। अपने लच्छेदार भाषण के लिए चर्चित शिवरतन शर्मा के बारे में कहा जाता है कि वे बोलने से पहले सोचते भी नहीें है और जुबान कैंची की तरह चलती है जिसके कारण पार्टी को कई बार नुकसान उठाना पड़ा है ऐसा ही एक वाक्ये के बाद उन्हें अपने वक्तव्य के लिए पार्टी के भीतर सफाई देनी पड़ी।

रविवार, 24 फ़रवरी 2019

चम्पू की चौधराहट


कभी अपने जेब में हाथ नहीं डालने के लिए चर्चित भाजपा के किसान नेता चन्द्रशेखर साहू की चौधराहट के किस्से कम नहीं है। दानी को लेकर उनकी चौधराहट के किस्से भी कम नहीं हो रहे है और अब दो-दो चुनाव लगातार हारने के बाद भी वे लोकसभा चुनाव लडऩे पार्टी पर दबाव बनाना शुरु कर दिया है। किसानों से रमन राज में हुए अन्याय के लिए माफी मांग कर सुर्खियां बटोरने वाले चम्पू ने ऐसा माहौल बनाना शुरु कर दिया है कि यदि उन्हें टिकिट नहीं दी गई तो कुछ भी ठीक नहीं होगा।
बैस की बुराई
अपने सीधे साधे छवि के लिए चर्चित भाजपा सांसद रमेश बैस की बुराई यह है कि वे अपने अपमान पर भी चुप रह जाते हैं लेकिन अब हालात बदल गये है और तीन दशक से रायपुर के सांसद बनते आ रहे रमेश बैस का दर्द इन दिनों साफ देखा जा सकता है। तो इसकी मोदी सरकार में मंत्री नहीं बनाने की बात तो है ही पार्टी द्वारा उनकी छवि को लेकर की जा रही टिप्पणी है। छत्तीसगढ़ के दिग्गज माने जाने वाले विद्याचरण शुक्ल, श्यामाचरण शुक्ल जैसे नेताओं को हराने वाले रमेश बैस के सामने हमेशा ही अपने छवि को लेकर संकट की स्थिति बनी रही। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण से लेकर एम्स खोलने में उनकी भूमिका को जब पार्टी ही नकारते हुए अटल को श्रेय देती है तो उनका दर्द छलक उठता है। सबसे बड़ी बात तो रमेश बैस मजबूरी है का जो नारा पार्टी ने दी है वह ऐसी छवि है जिससे उबर पाने की छटपटाहट साफ देखी जा सकती है। 
अमन की अदावत
यह तो जहाज को डुबते देख सबसे पहले चूहे के भागने की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना रमन सरकार के सबसे प्रभावशाली अफसरों में शुमार अमन सिं सत्ता जाते ही रातों रात छत्तीसगढ़ से यूं रफू-चक्कर नहीं होते। भाजपा कार्यकर्ता अब भले ही सत्ता जाने का ठिकरा अमन सिंह पर फोड़ते घुम रहे हैं पर इस सबसे ताकतवर माने जाने वाले अफसर के इस तरह भाग जाने को लेकर न केवल चर्चा है बल्कि यह भी कहा जा रहा है कि यदि वे नहीं भागते तो भाजपा के ही किसी कार्यकर्ता के हाथों पिट जाते। हालांकि सत्ता बदलते ही भगाने वालों में अमन सिंह के अलावा कई अफसरों के नाम है जबकि जोगी शासनकाल में यादव भी ऐसे ही भाग खड़े हुए थे।
गुरुमख की बदकिस्मती
मतरी से महज साढ़े चार सौ वोट से हारने वाले गुरुमुख सिंह होरा की किस्मत ही खराब है नहीं तो लगातार चुनाव जीतने वाले इस कांग्रेसी नेता लहर में चुनाव नहीं हारते। कहा जाता है कि यदि वे विधायत बनते तो उनका मंत्री बनना तय था और चरणदास महंत भी जय सिंह की जगह इन्हीं पर दांव लगाते लेकिन सब कुछ उल्टा हो गया है हालांकि वे लालबत्ती की उम्मीद पाले हैं और भरोसा अभी भी महंत पर ही है।
नीथू पर कमल भारी
पहली बार राजधानी में महिला कप्तान का तमगा लगवाने वाली नीथू कमल को सिर्फ दो महीने में ही चलता कर दिया गया तो इसकी वजह भी ढूंढी जा रही है। आते ही सटोरिये, अवैध शराब और कबाडिय़ों के खिलाफ अभियान छेडऩे वाली नीथू कमल को हटाने की वजह को लेकर कई तरह की चर्चा है कहा जा रहा है कि उनके नाम में कमल का होना ही उन पर भारी पड़ा क्योंकि राजधानी में कमल का नाम भी सरकार को सुनना पसंद नहीं है।
सेठ तो गयो...
विधानसभा चुनाव में सेठ तो गयों का जो नारा बिलासपुर में लगा ता वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। लखीराम अग्रवाल की वजह से भाजपा की टिकिट लेकर दमदारी से बिलासपुर में डंका बजाने वाले अमर अग्रवाल की पराजय की उम्मीद बहुत ही कम लोगों को थी लेकिन सेठ तो गयो का नारे में वह इस कदर बहे कि लोग अब यह भी दावा कर रहे हैं कि अगली बार उन्हें टिकिट भी नहीं मिलने वाली है यानी भाजपा के भीतर भी सेठ तो गयो का नारा चल रहा है।