रविवार, 24 फ़रवरी 2019

चम्पू की चौधराहट


कभी अपने जेब में हाथ नहीं डालने के लिए चर्चित भाजपा के किसान नेता चन्द्रशेखर साहू की चौधराहट के किस्से कम नहीं है। दानी को लेकर उनकी चौधराहट के किस्से भी कम नहीं हो रहे है और अब दो-दो चुनाव लगातार हारने के बाद भी वे लोकसभा चुनाव लडऩे पार्टी पर दबाव बनाना शुरु कर दिया है। किसानों से रमन राज में हुए अन्याय के लिए माफी मांग कर सुर्खियां बटोरने वाले चम्पू ने ऐसा माहौल बनाना शुरु कर दिया है कि यदि उन्हें टिकिट नहीं दी गई तो कुछ भी ठीक नहीं होगा।
बैस की बुराई
अपने सीधे साधे छवि के लिए चर्चित भाजपा सांसद रमेश बैस की बुराई यह है कि वे अपने अपमान पर भी चुप रह जाते हैं लेकिन अब हालात बदल गये है और तीन दशक से रायपुर के सांसद बनते आ रहे रमेश बैस का दर्द इन दिनों साफ देखा जा सकता है। तो इसकी मोदी सरकार में मंत्री नहीं बनाने की बात तो है ही पार्टी द्वारा उनकी छवि को लेकर की जा रही टिप्पणी है। छत्तीसगढ़ के दिग्गज माने जाने वाले विद्याचरण शुक्ल, श्यामाचरण शुक्ल जैसे नेताओं को हराने वाले रमेश बैस के सामने हमेशा ही अपने छवि को लेकर संकट की स्थिति बनी रही। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण से लेकर एम्स खोलने में उनकी भूमिका को जब पार्टी ही नकारते हुए अटल को श्रेय देती है तो उनका दर्द छलक उठता है। सबसे बड़ी बात तो रमेश बैस मजबूरी है का जो नारा पार्टी ने दी है वह ऐसी छवि है जिससे उबर पाने की छटपटाहट साफ देखी जा सकती है। 
अमन की अदावत
यह तो जहाज को डुबते देख सबसे पहले चूहे के भागने की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना रमन सरकार के सबसे प्रभावशाली अफसरों में शुमार अमन सिं सत्ता जाते ही रातों रात छत्तीसगढ़ से यूं रफू-चक्कर नहीं होते। भाजपा कार्यकर्ता अब भले ही सत्ता जाने का ठिकरा अमन सिंह पर फोड़ते घुम रहे हैं पर इस सबसे ताकतवर माने जाने वाले अफसर के इस तरह भाग जाने को लेकर न केवल चर्चा है बल्कि यह भी कहा जा रहा है कि यदि वे नहीं भागते तो भाजपा के ही किसी कार्यकर्ता के हाथों पिट जाते। हालांकि सत्ता बदलते ही भगाने वालों में अमन सिंह के अलावा कई अफसरों के नाम है जबकि जोगी शासनकाल में यादव भी ऐसे ही भाग खड़े हुए थे।
गुरुमख की बदकिस्मती
मतरी से महज साढ़े चार सौ वोट से हारने वाले गुरुमुख सिंह होरा की किस्मत ही खराब है नहीं तो लगातार चुनाव जीतने वाले इस कांग्रेसी नेता लहर में चुनाव नहीं हारते। कहा जाता है कि यदि वे विधायत बनते तो उनका मंत्री बनना तय था और चरणदास महंत भी जय सिंह की जगह इन्हीं पर दांव लगाते लेकिन सब कुछ उल्टा हो गया है हालांकि वे लालबत्ती की उम्मीद पाले हैं और भरोसा अभी भी महंत पर ही है।
नीथू पर कमल भारी
पहली बार राजधानी में महिला कप्तान का तमगा लगवाने वाली नीथू कमल को सिर्फ दो महीने में ही चलता कर दिया गया तो इसकी वजह भी ढूंढी जा रही है। आते ही सटोरिये, अवैध शराब और कबाडिय़ों के खिलाफ अभियान छेडऩे वाली नीथू कमल को हटाने की वजह को लेकर कई तरह की चर्चा है कहा जा रहा है कि उनके नाम में कमल का होना ही उन पर भारी पड़ा क्योंकि राजधानी में कमल का नाम भी सरकार को सुनना पसंद नहीं है।
सेठ तो गयो...
विधानसभा चुनाव में सेठ तो गयों का जो नारा बिलासपुर में लगा ता वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। लखीराम अग्रवाल की वजह से भाजपा की टिकिट लेकर दमदारी से बिलासपुर में डंका बजाने वाले अमर अग्रवाल की पराजय की उम्मीद बहुत ही कम लोगों को थी लेकिन सेठ तो गयो का नारे में वह इस कदर बहे कि लोग अब यह भी दावा कर रहे हैं कि अगली बार उन्हें टिकिट भी नहीं मिलने वाली है यानी भाजपा के भीतर भी सेठ तो गयो का नारा चल रहा है। 

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