शनिवार, 23 मार्च 2013

बिरजू की बांसुरी बेसुरी हुई।


अपने स्टाईल से विरोधियों में भी लोकप्रिय प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने सपने में भी नहीं सोचा था कि पांचवे कुंभ की कलई उनकी ही पार्टी के लोग खोल देंगे। वे तो राजिम कुंभ को लेकर इतने आश्वस्त थे कि उनके राजिम से चुनाव लडऩे तक की हवा उडऩे लगी थी। लेकिन प्रदेश सरकार ने विधायकों का इलाहाबाद कुंभ स्नान का दौरा बनाकर सब मटिया मेट कर दिया। इससे पांचवे कुंभ को स्थापित करने की राह में खलल तो हुआ ही धर्म और छत्तीसगढिय़ा संस्कृति से खिलवाड़ का तोहमत भी लगने लगा है अब बिरजू इसे पांचवा कुंभ कहे भी तो कैसे?
मोदी-शिव में फंसे रमन...
अब तक भाजपा के हर बड़े कार्यक्रम में वाहवाही लुटने वाले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को इस बार मुंह की खानी पड़ी। पूरे सम्मेलन के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान छाये रहे। यहां तक कि राजनाथ से लेकर आडवानी तक उनके नाम का जिक्र नहीं किया। छत्तीसगढ़ के विकास मॉडल भी गुम हो गया तो इसकी वजह यहां बताने वाला विकास नहीं होना है। इसके अलावा रमन सिंह के जिक्र नहीं होने की वजह कोयले की कालिख भी बताया जा रहा है।
सचिदानंद का भरोसा...
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस विधायक कुलदीप जुनेजा के हाथों पराजय होने वाले शहर के इकलौते भाजपा प्रतयाशी सचिदानंद उपासने को आने वाले चुनाव में टिकिट मिलने का यदि पूरा भरोसा है तो इसकी वजह कम वोट से हारने के अलावा दिल्ली में बैठे भाई की पहुंच है। हालांकि उनके क्षेत्र से सुनील सोनी और श्रीचंद सुुंदरानी के अलावा कई और दावेदार हैं।
चंदेल पर भारी...
भले ही बढ़ते अपराध को लेकर ग्रह-नक्षत्र की बात करने वाले ननकीराम कंवर के विवादस्पद ब्यान पर पार्टी में ही एका न हो लेकिन लगता है विधानसभा उपाध्यक्ष नारायण चंदेल की गृह दशा ठीक नहीं चल रही है तभी तो वे इन दिनों ज्योतिष के फेर में पड़ गये हैं। पहले उनके काफिले ने राजधानी में एक कालेज छात्रा मजु जैन की जान ले ली और अब वे जब उडऩ खटोला से चांपा जांजगीर में उतर रहे थे तो ठीक पहले हेलीपेड के नजदीक आग लग गई। अब इस घटना के बाद उनके साथ् दौरे में जानेके लिए कई लोग घबराने लगे हैं।
कुर्सी का खेल
आईपीएल हो और उसमें खेल की कोशिश न हो, यह भला हो सकता है। आईपीएल का ऐलान होते ही नेताओं से जुड़े कई सप्लायरों के लार टपकने शुरू हो गए थे। खास कर कुर्सी सप्लाई के लिए। कुर्सी सप्लाई बोले तो माल चोखा। 50,000 कुर्सी में एक पर, गिरे हालत में 200 रुपए भी बचा, तो एक करोड़ अंदर। फिलहाल, आरटीआई एक्टिविस्ट यह जानने के लिए एक्टिव हो गए हैं कि 1200 रुपए में कुर्सी का टेंडर हुआ है, उसमें किस नेता की कितनी चली है और कितना अंदर होगा। वजह, नागपुर स्टेडियम में बीसीसीआई ने पिछले साल 450 रुपए में कुर्सी लगवाई है। नागपुर स्टेडियम बीसीसीआई का है और वह हल्की चीज तो खरीदेगा नहीं। फिर, साल में दो-एक मैच वहां होते ही हैं। और यहां 1200, तो आरटीआई वालों का माथा ठनकना स्वाभाविक है।  
बुरे फंसे
रेलवे एसपी केसी अग्रवाल के सामने, मिलकर भी ना मिलने वाली स्थिति निर्मित हो गई है। दरअसल, सरकार ने पिछले दिनों आईपीएस की मेजर सर्जरी की थी, उसमें उन्हें मुंगेली का एसपी बनाया गया था। मगर पोस्टिंग के समय चूक हो गई। मुंगेली उनका गृह जिला है, इस पर किसी का ध्यान नहीं गया। वे उसी जिले के पथरिया के रहने वाले हैं। सो, चुनाव आयोग उन्हें छोड़ेगा नहीं। अब, अग्रवाल ने सरकार से आग्रह किया है कि उन्हें दूसरा कोई जिला दे दिया जाए। और सरकार के सामने असमंजस यह है कि जिन 18 जिलों के एसपी बदले गए थे, उनमें से सभी ज्वाईन कर लिए हैं। अब, अग्रवाल को कहां एडजस्ट किया जाए, कठिन प्रश्न हो गया है। इस चक्कर में पखवाड़े भर से मुंगेली जिला भी खाली है। वहां के एसपी कोटवानी रिलीव होकर चले गए हैं। अब खबर आ रही है, मुंगेली में अब नया एसपी पोस्ट किया जाएगा और संभवत: अग्रवाल को रेलवे एसपी यथावत रखा जाए।
पुअर पारफारमेंस
चुनावी साल होने की वजह से बजट सत्र में अबकी कांगे्रस से अग्रेसिव पारफारमेंस की उम्मीद की जा रही थी। मगर दिख उल्टा रहा है। आठ दिन की कार्रवाइयों में एक भी दिन ऐसा नहीं हुआ, जब विपक्ष, सरकार को बगले झांकने पर मजबूर किया हो। कुछ गंभीर मुद्दे भी आए, तो आक्रमण करने वाला दस्ता सदन से नदारत था। राज्य बनने के 12 साल में गुरूवार को पहली बार लोगों ने देखा, गृह विभाग की अनुदान पर चर्चा ढाई घंटे में सिमट गई। सत्ता पक्ष की ओर सीएम और मंत्रियों को मिलाकर 24 सदस्य थे, वहीं विपक्ष के मात्र आठ। नेता प्रतिपक्ष से लेकर नंदकुमार पटेल, अजीत जोगी जैसे सभी गैर हाजिर। ऐसे में संसदीय कार्य मंत्री बृजमोहन अग्रवाल कटाक्ष करने का मौका मिल गया, गृह विभाग का काम इतना बढिय़ां चल रहा है कि पहले इस पर आठ-आठ घंटा चर्चा होती थी, इस बार ढाई घंटे में ही गृह मंत्री की बोलने की बारी आ गई। आश्चर्य तो तब हुआ, जब राज्यपाल के अभिभाषण पर नेता प्रतिपक्ष के भाषण के समय सदन में एक चैथाई से भी कम सदस्य बच गए थे। कांग्रेस के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है। 

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