शनिवार, 6 जुलाई 2024

कमाहूँ नहीं त काला खाहूँ…

 कमाहूँ नहीं त काला खाहूँ…



साम्प्रदायिकता के सहारे चुनाव जीतकर विधायक बने ईश्वर साहू के बारे में कहा जाता है कि वे शुरू से ही खाटी भाजपाई रहे हैं और पेलिहा संग पंगनहा हारे की तर्ज पर उनका चाल-चलन गांव से लेकर पूरे विधानसभा में चर्चित होने लगा है लेकिन अब वे भी खाटी भाजपाई की तरह पूरे प्रदेश में फेमस हो गये है तो उसकी वजह उन पर लगने वाला वह आरोप है जिससे भाजपा के सभी विधायक ही नहीं पार्टी भी सकते में हैं।

पार्टी ने साजा विधानसमा से दिग्गज कांग्रेसी रविन्द्र चौबे  के खिलाफ जब ईश्वर साहू को टिकिर दिया था तो उसने भी नहीं सोचा था कि ईश्वर साहू इतने बड़े फ़क़ीर निकलेगे। अब जब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने जनदर्शन लगाना शुरू किया तो पहले ही जनदर्शन में ईश्वर साहू की पोल खुल गई। मामला दबाने के लिए ईश्वर साहू पर दो लाख रुपये लेने का आरोप लग गया।

भले ही सरकार ने इस खबर को प्रमुख मीडिया संस्थानों में छपने से रोक कर पार्टी की इज्जत बचा लिया हो लेकिन खबरे तो लोगों तक पहुंच ही गई है। तो दूसरी ताफ ईश्वर साहू के दूसरे खेल का खुलासा भी होने लगा है।

हालांकि ईश्वर साहू तो पैसों को लेकर उसी दिन चर्चा में आ गये थे, जब विधानसमा चुनाव में खर्च का ब्योरा सामने आया था। उन्होंने खर्च के मामले में विष्णुदेव साय तो छोड़िये मोहन सेठ को भी पछाड़ दिया था, जबकि उसकी कमाई तब 25 हजार रूपये महिना की थी। अब यह पैसा कहाँ से आया, क्या कोई  एजेंसीं जांच करेगी , यह एक अलग सवाल है।

लेकिन पार्टी को समझ नहीं आ रहा है कि मामला जब विधानसभा में उठेगा तो क्या जवाब दिया जाएगा ।

सोमवार, 17 जून 2024

बोया पेड़ बबूल का...

 

बोया पेड़ बबूल का... 

 


यह तो बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना प्रदेश में सबसे ज्यादा वोट से जीतकर विधायक बनने वाले मोहन सेठ को विधायकी से इस्तीफ़ा देना नहीं पड़ता ।

दरअसल जमीन घोटाले से लेकर भ्रष्टाचार के कई तरह के आरोपों से घिरे मोहन सेठ की उल्टी गिनती तो उसी दिन शुरू हो गई थी जिस दिन नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली की, लेकिन सेठगिरी के दम पर राजनीति को साधने में माहिर मोहन सेठ इसलिए बचे रहे क्योंकि पिछली बार विधानसमर में भाजपा हार गई और अब जब भाजपा की प्रदेश में सरकार बन गई तो उन्हें सत्ता से किनारे करने  सांसद का  टिकिट  दे दिया गया ।

कैसे कहते भी हैं कि नरेद्र मोदी अपने विरोधियों को आसानी से छोड़ते नहीं है फिर टेबल के नीचे छिपने  जैसी  स्थिति पैदा करने वाले को वे कैसे छोड़ते ! 

इसलिए  मोहन सेठ को राजनीतिक चाल से ही पीटा गया । मोहन सेठ खून का आँसू बहाकर रह गये ।अभी विधायकी गई है कुछ दिनों में मंत्री पद भी चला जायेगा फिर रह जायेगी सांसदी ।



ऐसे में अब मोहन सेठ की राजनीति का क्या होगा, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है और शायद यही वजह है कि अब मोहन सेठ बंगले में सबसे ज्यादा गूंज  किसी बात की है तो वह है रंगा-बिल्ला और रंगा- बिल्ला के प्रति सेठ के कार्यकर्ताओं का ग़ुस्सा देखते ही बनता है।

इधर इस बात की भी चर्चा है कि मौक़े  का फायदा उठाते हुए मुख्यमंत्री दफ़्तर ने भी मोहन सेठ के विभागों की सैकड़ों फाईले रोक रखी  है जिसमें तबादला - पदोन्नति की फाईल अधिक है। यानी मंत्री जितने भी रहे, काम कुछ होने वाला नहीं।

शुक्रवार, 8 मार्च 2019

बाबा की बांसुरी

बाबा की बांसुरी
मुख्यमंत्री की दौड़ में पिछडऩे वाले टीएस बाबा के अपने जलवे हैं। कहते है कि उनका काम करने का अपना तरीका है। अम्बिकापुर में उनकी शैली अलग तरह की है तो प्रदेश के दूसरे हिस्से में वे काफी सौम्य और शांत प्रवृत्ति के माने जाते हैं। वक्त की नजाकत को पहले से ही भांप जाने का उनका अपना तरीका है लेकिन रिश्तेदारी निभाने और कार्पोरेट प्रेम के आगे वे बेबस हो जाते  हैं। यही वजह है कि विधानसभा चुनाव के दौरान जूदेव परिवार के खिलाफ प्रचार नहीं करने की उनकी बातों से कांग्रेस की किरकिरी हुई थी तो अडानी प्रेम के किस्सों ने उनकी छवि पर असर डालना शुरु कर दिया है। दरअसल अडानी को जो कोल ब्लॉक छत्तीसगढ़ में मिला है उसका एक हिस्सा बाबा के विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत है और यहां आदिवासियों की बेदखली पर बाबा का अलग ही सुर कांग्रेस के लिए संकट का कारण हो सकता है।
गोपाल की गूंज
वैसे तो रामगोपाल अग्रवाल के किस्से कई तरह के है। कभी शुक्ल बंधुओं के करीबी रहे प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल इन दिनों अपने बहनोई की वजह से कांग्रेस के भीतर चर्चे में हैं। चर्चा की वजह बहनोई संतोष अग्रवाल का 141 करोड़ का जीएसटी घोटाला है। लोहा कारोबारी संतोष अग्रवाल का हालांकि रामगोपाल अग्रवाल से सिर्फ रिश्तेदारी वाला ही संबंध है लेकिन चर्चा करने वालों को तो रोका नहीं जा सकता और न ही चर्चा सिर्फ बहनोई तक ही रुकने वाला है इसलिए बहनोई की मदद से लेकर वे किस्से भी बाहर आने लगे है जिनकी चर्चा रामगोपाल अग्रवाल के लिए ही नहीं कांग्रेस के लिए भी असहज है।
कवासी का कमाल
विपरित परिस्थितियों में भी हर बात को हंसी में टाल देने वाले प्रदेश सरकार के आबकारी मंत्री कवासी लखमा इन दिनों चर्चा में है तो इसकी वजह उनके पत्रकारों के साथ हुए कथित विवाद है। पत्रकारों का एक वर्ग अभी भी दावा कर रहा है कि कवासी लखमा ने एक पत्रकार को आरएसएस का बता दिया लेकिन यह लखमा का ही कमाल है कि पत्रकारों का एक बड़ा वर्ग को उसके इस कथन पर भरोसा नहीं है।
नखरा नवीन का
जिस पार्टी ने नवीन मारकण्डेय को जीतने योग्य नहीं समझकर विधानसभा की टिकिट नहीं दी इन दिनों वह आने वाले चुनाव में टिकिट पाने की उम्मीद पाल रखा हो इसके बारे में कोई क्या कह सकता है? आरंग के विधायक रहे नवीन मारकण्डेय को उम्मीद है कि अगली बार उसे टिकिट मिल जायेगी तो इसकी वजह यहां से भाजपा को मिली हार है और वे अपनी राजनीति चमकाने नये-नये तरीके अपनाने लगे है। कहा जाता है कि विश्रामगृह के उद्घाटन को लेकर मचे बवाल को इसी नजरिये से देखा जा रहा है। जबकि पार्टी ने भी इस मामले को लेकर नवीन का खूब उपयोग किया।
चन्द्राकर की चिढऩा
भाजपा राज में दमदारी से पैसा कमाने के लिए चर्चित कुरुद के विधायक  ने कांग्रेस की लड़ाई का फायदा उठाते हुए जीत दर्ज की हो लेकिन लगता है कि पार्टी की हार को वे अब भी पचा नहीं पा रहे हैं। यही वजह है कि गाहे-बगाहे उनकी चिढ़ सामने आ जाती है। हालांकि विवादों में रहे अजय चंद्राकर के लिए बदजुबानी कोई नया नहीं है लेकिन विधानसभा जैसी जगह में भी उनकी यह हरकत को लेकर लोग हैरान है हालांकि बृजमोहन ने बीच बचाव कर मामला शांत कर दिया लेकिन पैसा बोलता है कि चर्चा को विराम नहीं लग पा रहा है।
श्वेता का खेल
भाजपा सरकार में अपने जलवे को लेकर चर्चा में रही पुलिस अधिकारी श्वेता सिंहा इन दिनों फिर सुर्खियों में है तो इसकी वजह उसकी राजधानी वापसी है। भाजपा शासनकाल में विवादों के बाद भी उसकी राजधानी में पोस्टिंग को लेकर कई तरह की चर्चा रही और नौबत तलाक तक आ पहुंची। लेकिन सत्ता बदलते ही जिस तरह से उसका तबादला किया गया था उससे उसकी राजधानी वापसी के रास्ते को बंद समझने वाले को तब झटका लगा जब वह खेल विभाग में राजधानी आ गई। अब लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि श्वेता सिंहा ने आखिर क्या खेल खेला।
तमकना ताम्रध्वज का
अपने शांत स्वभाव के लिए चर्चित प्रदेश के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू इन दिनों सुर्खियों में है तो इसकी वजह उनके अपने बेटों का जलवा है। कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि दो बेटे दो विभाग चला रहे हैं और ताम्रध्वज साहू इस मामले में कुछ कर भी नहीं पा रहे है इसलिए उन्होंने अपना गुस्सा संस्कृति विभाग के फिजूलखर्ची पर उतारा और आयोजन रद्द करने का निर्देश भी दे दिया। यह अलग बात है कि उनकी तमतमाहट के बावजूद यह कार्यक्रम हो गया।
खोदा पहाड़ निकली चुहिया
यह तो खोदा पहाड़ निकली चुहिया की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना भाटापारा के विधायक शिवरतन शर्मा को बजट सत्र में इस तरह मुंह की खानी नहीं पड़ती। अपने लच्छेदार भाषण के लिए चर्चित शिवरतन शर्मा के बारे में कहा जाता है कि वे बोलने से पहले सोचते भी नहीें है और जुबान कैंची की तरह चलती है जिसके कारण पार्टी को कई बार नुकसान उठाना पड़ा है ऐसा ही एक वाक्ये के बाद उन्हें अपने वक्तव्य के लिए पार्टी के भीतर सफाई देनी पड़ी।

रविवार, 24 फ़रवरी 2019

चम्पू की चौधराहट


कभी अपने जेब में हाथ नहीं डालने के लिए चर्चित भाजपा के किसान नेता चन्द्रशेखर साहू की चौधराहट के किस्से कम नहीं है। दानी को लेकर उनकी चौधराहट के किस्से भी कम नहीं हो रहे है और अब दो-दो चुनाव लगातार हारने के बाद भी वे लोकसभा चुनाव लडऩे पार्टी पर दबाव बनाना शुरु कर दिया है। किसानों से रमन राज में हुए अन्याय के लिए माफी मांग कर सुर्खियां बटोरने वाले चम्पू ने ऐसा माहौल बनाना शुरु कर दिया है कि यदि उन्हें टिकिट नहीं दी गई तो कुछ भी ठीक नहीं होगा।
बैस की बुराई
अपने सीधे साधे छवि के लिए चर्चित भाजपा सांसद रमेश बैस की बुराई यह है कि वे अपने अपमान पर भी चुप रह जाते हैं लेकिन अब हालात बदल गये है और तीन दशक से रायपुर के सांसद बनते आ रहे रमेश बैस का दर्द इन दिनों साफ देखा जा सकता है। तो इसकी मोदी सरकार में मंत्री नहीं बनाने की बात तो है ही पार्टी द्वारा उनकी छवि को लेकर की जा रही टिप्पणी है। छत्तीसगढ़ के दिग्गज माने जाने वाले विद्याचरण शुक्ल, श्यामाचरण शुक्ल जैसे नेताओं को हराने वाले रमेश बैस के सामने हमेशा ही अपने छवि को लेकर संकट की स्थिति बनी रही। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण से लेकर एम्स खोलने में उनकी भूमिका को जब पार्टी ही नकारते हुए अटल को श्रेय देती है तो उनका दर्द छलक उठता है। सबसे बड़ी बात तो रमेश बैस मजबूरी है का जो नारा पार्टी ने दी है वह ऐसी छवि है जिससे उबर पाने की छटपटाहट साफ देखी जा सकती है। 
अमन की अदावत
यह तो जहाज को डुबते देख सबसे पहले चूहे के भागने की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना रमन सरकार के सबसे प्रभावशाली अफसरों में शुमार अमन सिं सत्ता जाते ही रातों रात छत्तीसगढ़ से यूं रफू-चक्कर नहीं होते। भाजपा कार्यकर्ता अब भले ही सत्ता जाने का ठिकरा अमन सिंह पर फोड़ते घुम रहे हैं पर इस सबसे ताकतवर माने जाने वाले अफसर के इस तरह भाग जाने को लेकर न केवल चर्चा है बल्कि यह भी कहा जा रहा है कि यदि वे नहीं भागते तो भाजपा के ही किसी कार्यकर्ता के हाथों पिट जाते। हालांकि सत्ता बदलते ही भगाने वालों में अमन सिंह के अलावा कई अफसरों के नाम है जबकि जोगी शासनकाल में यादव भी ऐसे ही भाग खड़े हुए थे।
गुरुमख की बदकिस्मती
मतरी से महज साढ़े चार सौ वोट से हारने वाले गुरुमुख सिंह होरा की किस्मत ही खराब है नहीं तो लगातार चुनाव जीतने वाले इस कांग्रेसी नेता लहर में चुनाव नहीं हारते। कहा जाता है कि यदि वे विधायत बनते तो उनका मंत्री बनना तय था और चरणदास महंत भी जय सिंह की जगह इन्हीं पर दांव लगाते लेकिन सब कुछ उल्टा हो गया है हालांकि वे लालबत्ती की उम्मीद पाले हैं और भरोसा अभी भी महंत पर ही है।
नीथू पर कमल भारी
पहली बार राजधानी में महिला कप्तान का तमगा लगवाने वाली नीथू कमल को सिर्फ दो महीने में ही चलता कर दिया गया तो इसकी वजह भी ढूंढी जा रही है। आते ही सटोरिये, अवैध शराब और कबाडिय़ों के खिलाफ अभियान छेडऩे वाली नीथू कमल को हटाने की वजह को लेकर कई तरह की चर्चा है कहा जा रहा है कि उनके नाम में कमल का होना ही उन पर भारी पड़ा क्योंकि राजधानी में कमल का नाम भी सरकार को सुनना पसंद नहीं है।
सेठ तो गयो...
विधानसभा चुनाव में सेठ तो गयों का जो नारा बिलासपुर में लगा ता वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। लखीराम अग्रवाल की वजह से भाजपा की टिकिट लेकर दमदारी से बिलासपुर में डंका बजाने वाले अमर अग्रवाल की पराजय की उम्मीद बहुत ही कम लोगों को थी लेकिन सेठ तो गयो का नारे में वह इस कदर बहे कि लोग अब यह भी दावा कर रहे हैं कि अगली बार उन्हें टिकिट भी नहीं मिलने वाली है यानी भाजपा के भीतर भी सेठ तो गयो का नारा चल रहा है। 

शनिवार, 23 मार्च 2013

बिरजू की बांसुरी बेसुरी हुई।


अपने स्टाईल से विरोधियों में भी लोकप्रिय प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने सपने में भी नहीं सोचा था कि पांचवे कुंभ की कलई उनकी ही पार्टी के लोग खोल देंगे। वे तो राजिम कुंभ को लेकर इतने आश्वस्त थे कि उनके राजिम से चुनाव लडऩे तक की हवा उडऩे लगी थी। लेकिन प्रदेश सरकार ने विधायकों का इलाहाबाद कुंभ स्नान का दौरा बनाकर सब मटिया मेट कर दिया। इससे पांचवे कुंभ को स्थापित करने की राह में खलल तो हुआ ही धर्म और छत्तीसगढिय़ा संस्कृति से खिलवाड़ का तोहमत भी लगने लगा है अब बिरजू इसे पांचवा कुंभ कहे भी तो कैसे?
मोदी-शिव में फंसे रमन...
अब तक भाजपा के हर बड़े कार्यक्रम में वाहवाही लुटने वाले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को इस बार मुंह की खानी पड़ी। पूरे सम्मेलन के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान छाये रहे। यहां तक कि राजनाथ से लेकर आडवानी तक उनके नाम का जिक्र नहीं किया। छत्तीसगढ़ के विकास मॉडल भी गुम हो गया तो इसकी वजह यहां बताने वाला विकास नहीं होना है। इसके अलावा रमन सिंह के जिक्र नहीं होने की वजह कोयले की कालिख भी बताया जा रहा है।
सचिदानंद का भरोसा...
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस विधायक कुलदीप जुनेजा के हाथों पराजय होने वाले शहर के इकलौते भाजपा प्रतयाशी सचिदानंद उपासने को आने वाले चुनाव में टिकिट मिलने का यदि पूरा भरोसा है तो इसकी वजह कम वोट से हारने के अलावा दिल्ली में बैठे भाई की पहुंच है। हालांकि उनके क्षेत्र से सुनील सोनी और श्रीचंद सुुंदरानी के अलावा कई और दावेदार हैं।
चंदेल पर भारी...
भले ही बढ़ते अपराध को लेकर ग्रह-नक्षत्र की बात करने वाले ननकीराम कंवर के विवादस्पद ब्यान पर पार्टी में ही एका न हो लेकिन लगता है विधानसभा उपाध्यक्ष नारायण चंदेल की गृह दशा ठीक नहीं चल रही है तभी तो वे इन दिनों ज्योतिष के फेर में पड़ गये हैं। पहले उनके काफिले ने राजधानी में एक कालेज छात्रा मजु जैन की जान ले ली और अब वे जब उडऩ खटोला से चांपा जांजगीर में उतर रहे थे तो ठीक पहले हेलीपेड के नजदीक आग लग गई। अब इस घटना के बाद उनके साथ् दौरे में जानेके लिए कई लोग घबराने लगे हैं।
कुर्सी का खेल
आईपीएल हो और उसमें खेल की कोशिश न हो, यह भला हो सकता है। आईपीएल का ऐलान होते ही नेताओं से जुड़े कई सप्लायरों के लार टपकने शुरू हो गए थे। खास कर कुर्सी सप्लाई के लिए। कुर्सी सप्लाई बोले तो माल चोखा। 50,000 कुर्सी में एक पर, गिरे हालत में 200 रुपए भी बचा, तो एक करोड़ अंदर। फिलहाल, आरटीआई एक्टिविस्ट यह जानने के लिए एक्टिव हो गए हैं कि 1200 रुपए में कुर्सी का टेंडर हुआ है, उसमें किस नेता की कितनी चली है और कितना अंदर होगा। वजह, नागपुर स्टेडियम में बीसीसीआई ने पिछले साल 450 रुपए में कुर्सी लगवाई है। नागपुर स्टेडियम बीसीसीआई का है और वह हल्की चीज तो खरीदेगा नहीं। फिर, साल में दो-एक मैच वहां होते ही हैं। और यहां 1200, तो आरटीआई वालों का माथा ठनकना स्वाभाविक है।  
बुरे फंसे
रेलवे एसपी केसी अग्रवाल के सामने, मिलकर भी ना मिलने वाली स्थिति निर्मित हो गई है। दरअसल, सरकार ने पिछले दिनों आईपीएस की मेजर सर्जरी की थी, उसमें उन्हें मुंगेली का एसपी बनाया गया था। मगर पोस्टिंग के समय चूक हो गई। मुंगेली उनका गृह जिला है, इस पर किसी का ध्यान नहीं गया। वे उसी जिले के पथरिया के रहने वाले हैं। सो, चुनाव आयोग उन्हें छोड़ेगा नहीं। अब, अग्रवाल ने सरकार से आग्रह किया है कि उन्हें दूसरा कोई जिला दे दिया जाए। और सरकार के सामने असमंजस यह है कि जिन 18 जिलों के एसपी बदले गए थे, उनमें से सभी ज्वाईन कर लिए हैं। अब, अग्रवाल को कहां एडजस्ट किया जाए, कठिन प्रश्न हो गया है। इस चक्कर में पखवाड़े भर से मुंगेली जिला भी खाली है। वहां के एसपी कोटवानी रिलीव होकर चले गए हैं। अब खबर आ रही है, मुंगेली में अब नया एसपी पोस्ट किया जाएगा और संभवत: अग्रवाल को रेलवे एसपी यथावत रखा जाए।
पुअर पारफारमेंस
चुनावी साल होने की वजह से बजट सत्र में अबकी कांगे्रस से अग्रेसिव पारफारमेंस की उम्मीद की जा रही थी। मगर दिख उल्टा रहा है। आठ दिन की कार्रवाइयों में एक भी दिन ऐसा नहीं हुआ, जब विपक्ष, सरकार को बगले झांकने पर मजबूर किया हो। कुछ गंभीर मुद्दे भी आए, तो आक्रमण करने वाला दस्ता सदन से नदारत था। राज्य बनने के 12 साल में गुरूवार को पहली बार लोगों ने देखा, गृह विभाग की अनुदान पर चर्चा ढाई घंटे में सिमट गई। सत्ता पक्ष की ओर सीएम और मंत्रियों को मिलाकर 24 सदस्य थे, वहीं विपक्ष के मात्र आठ। नेता प्रतिपक्ष से लेकर नंदकुमार पटेल, अजीत जोगी जैसे सभी गैर हाजिर। ऐसे में संसदीय कार्य मंत्री बृजमोहन अग्रवाल कटाक्ष करने का मौका मिल गया, गृह विभाग का काम इतना बढिय़ां चल रहा है कि पहले इस पर आठ-आठ घंटा चर्चा होती थी, इस बार ढाई घंटे में ही गृह मंत्री की बोलने की बारी आ गई। आश्चर्य तो तब हुआ, जब राज्यपाल के अभिभाषण पर नेता प्रतिपक्ष के भाषण के समय सदन में एक चैथाई से भी कम सदस्य बच गए थे। कांग्रेस के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है। 

सोमवार, 4 मार्च 2013

कोरबा रोड़ ही सही


बिलासपुर के एसपी रतनलाल डांगी देश के संभवत: पहले एसपी होंगे, जिन्हें शहर में रहना नहीं भाता। उन्होंने जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर कोनी ग्राम पंचायत के आमतौर पर सूनसान रहने वाले इलाके में अपना ठिकाना बनाया है। जाहिर है, एसपी का बंगला अपने-आप में कंट्रोल रुम से कम नहीं होता, और उस इलाके के दो-तीन किलोमीटर के सराउंडिंग के लोग अपने को सुरक्षित समझते हैं। अब, एसपी ही शहर से बाहर रहेगा, तो पोलिसिंग का अंदाजा आप लगा सकते हैं। लेकिन कप्तान को बोले कौन। आईजी अशोक जूनेजा ने उनको इशारा किया था। नए आईजी राजेश मिश्रा को पता चला तो वे भी आवाक रह गए। अब, ऐसे में लोगबाग चुटकी क्यों न लें। कह रहे हैं.....डांगी साब, लंबे समय तक कोरबा में एसपी रहे हैं और अब कोरबा नही ंतो कोरबा रोड ही सही। मगर इससे पोलिसिंग का तो बाजा बज रहा है। न्यायधानी, अपराधधानी में तब्दील होती जा रही है।
उसेंडी चले  ननकी की राह
वन मंत्री विक्रम उसेंडी राज्य के दूसरे ननकीराम कंवर हो गए हैं, जिनकी अपने ही महकमे में कोई सुनवाई नहीं हो रही है। पता चला है, वन मुख्यालय-अरण्य तो उन्हें एकदम भाव नहीं दे रहा। आईएफएस अफसर मोरगन को प्रशासन और एके द्विवेदी को वाइल्ड लाइफ से हटाने के लिए उसेंडी दसियों नोटशीट भेज चुके होंगे। पर अफसर उसे कूड़ेदान में डाल दे रहे हैं। उसेंडी की स्थिति मार्च के बाद ज्यादा खराब हुई है, जब अरण्य और मंत्रालय के नौकरशाहों के बीच के डोर मजबूत हुए। कमोवेश, ऐसी ही हालत गृह मंत्री ननकीराम कंवर की भी है। फर्क इतना ही है, ननकीराम फट पड़ते हैं और उसेंडी में उतना डेसिंग नहीं है। 
बैजेंद्र नया खेल
एन. बैजेंद्र कुमार सीएम के प्रींसिपल सिकरेट्री के साथ आवास पर्यावरण, जनसंपर्क और न्यू रायपुर तो देखहीरहे हैं इसके साथ, अपरोक्ष तौर पर आजकल एक नए रोल में भी हैं। किरदार है, राज्य के युवा आईएएसकोप्रशासन के गुर समझाने का। बैजेंद्र के सुझाव पर ही अब कलेक्टर बनने से पहले या एकाध जिला करचुकेअफसरों को राजधानी में पोस्ट किया जा रहा है। ताकि, वे सिस्टम को नजदीक से देखसकें.....उसकीपेचीदगियों से वाकिफ हो सकें......विधानसभा की अहमियत को जान सकें। अमित कटारियाबैजेंद्र के पहलेस्टूडेंट थे। आरडीए में सीईओ रहने के बाद वे अब रायगढ़ कलेक्टर हैं। इसके बाद एलेक्स पालमेनन, एसप्रकाश और हिमांशु गुप्ता को राजधानी बुलाया गया है। बैजेंद्र का मानना है, सिस्टम को समझ लेनेऔरराजधानी में तप जाने के बाद, आईएएस बढिय़ां ढंग से जिले में काम कर सकेंगे। ठीक है, बैजेंद्र सर।     
महापौर का मोह...
लगता है महापौर बनने के बाद भी किरण मयी नायक का कोर्ट का मोह नहीं छुट पाया है। हर बात पर कानून का दरवाजा खटखटाने को लेकर अब तो निगम के गलियारे से लेकर चौक चौराहों पर चुटकुले सुनाये जाने लगा है। बजबजाती नालियां हो  या भयंकर मच्छर चर्चा जब भी चलती है लोग कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने का सलाह ही नहीं देते बल्कि यह कहते भी नहीं चुकते कि एक नि मच्छरों के खिलाफ भी जनहित याचिका लग ही जायेगी।
अब सभापति के अविश्वास प्रस्ताव को कोर्ट द्वारा स्वीकृत नहीं करने पर लोग कहने लगे है कानून की ऐसी जानकारी का क्या फायदा ?
दयाल दास पर दया
वैसे तो प्रदेश भर में आरक्षण कटौति को लेकर सतनामी समाज नाराज है लेकिन सरकार के मंत्री दयाल दास बघेल को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क तो इस बात से भी नहीं पड़ता कि उनकी कुछ नहीं चलती। सरकार का हिस्सा होने के बाद भी उन्हें खनिज माफियाओं की शिकायत इसलिए लिखित में करनी पड़ती है कि मुख्यमंत्री के पास खनिज विभाग है ।
सीधी कार्रवाई की बजाय शिकायत करने की वजह से विधानसभा में भी उनकी किरकिरी हुई लेकिन यहां भी कोई फर्क नहीं पड़ा। तभी तो कहा जाता है कि छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा । वैसे सबसे कम बजट भी दयाल दास बघेल को ही दिया गया है ।
अकेले पड़े अमितेष
शुक्ल खानदार के राजनैतिक उतराधिकारी और राजिम के विधायक अमितेष शुक्ल की दिक्कत यह है कि वे राजिम कुंभ के नाम पर हो रहे फर्जीवाड़े के खिलाफ कुछ नहीं कर पा रहे हैं । सरकार की नीति के चलते यहां खुले आम शराब बिक रहे हैं और भ्रष्टाचार का खेल चल रहा है। विधानसभा तक में अपनी आवाज उठा चुके अभितेष अब समझने लगे है कि कुंभ मामले में कांग्रेस से भी उनकी सहयोग क्यों नहीं मिल रहा है आखिर बिरजू की बांसूरी के सुर के कई कांग्रेसी कायल है ऐसे में उन्हें अकेले कुंभ समारोह के बहिष्कार का निर्णय लेना पड़ा।
महंत का खेल...
अपनी गुड़ाखू और गुरूमुख प्रेम की वजह से चर्चा में रहने वाले केन्द्रीय राज्य मंत्री चरणदास महंत इन दिनों हर हाल में खबरों में बने रहना चाहते हैं । तभी तो स्वयं को मुख्यमंत्री की दौड़ में बनाये रखने उन्होंने उम्र का सियासी दांव खेल दिया लेकिन दावं खेलते समाज वे भूल गए कि खूद भी 60 के करिब पहुंच चुके है । और कहीं उनका यह उम्र वाला बयान सढियाने की वजह न बन जाये

मोहन का स्टाईल...


चुनाव आते ही वैसे तो सभी नेताओं के कार्यो का लेखा जोखा चौक चौराहों पर चर्चा का विषय रहता है लेकिन लोक निर्माण मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की लीला ही निराली है । उनके स्टाईल का न केवल भाजपा बल्कि विपक्ष के कई नेता भी कायल है । और चुनाव आते ही बिरजू की बांसूरी के सुर और भी मधुर होने लगता है । तभी तो पिछले दिनों आर्शीवाद भवन में आयोजित एक सामाजिक कार्यक्रम में जब बृजमोहन अग्रवाल बगैर न्यौता के पहुंचे तो उनकी स्टाईल से समाज वाले गद्गद् हो गये । ये अलग बात है कि कुछ लोग यह कहते नहीं थक रहे हैं कि चुनाव आ गया है अब तो किसी को नहीं बुलाओं तब भी पहुंच जायेंगे । लोगों का क्या जितनी मुंह उतनी बात । अब मोहन का तो अपना स्टाईल है ।
अमर का डर...
लगता है प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल का ग्रह नक्षत्र ठीक नहीं चल रहा है तभी तो वे जब भी विदेश जाते हैं कोई न कोई बड़ा कांड हो जाता है और विधानसभा में जवाब देना मुश्किल हो जाता है ।
लगता है इस बार विधानसभा में नेत्र कांड की संभावित गुंज ने उन्हें भीतर तक हिला दिया है तभी तो वे बागबाहरा नेत्र कांड के दोषियों के खिलाफ आनन फानन में कार्रवाई कर दी जबकि अभी तक केन्द्रीय प्रयोगशाला से जांच रिपोर्ट नहीं आई है ।
पहले ही विभागीय अफसरों की करतूतों की वजह से अपनी किरकिरी करवा चुके अमर अग्रवाल के साथ दिक्कत यह है कि गर्भाशय कांड के खलनायक अभी भी मजे से प्रेक्टिस कर रहे है और लेन देन के खेल की वजह से ही उनके विभाग के घपलेबाजों के हौसले बुलंद है तो डर स्वाभाविक है ।
महुआ पर मेहरबानी...
महुआ मजूमदार इन दिनों प्रदेश भर में चर्चा का विषय है तो इसकी वजह उसकी कमजोर हिन्दी नहीं बल्कि सीएम हाऊस तक पहुंच है । तरह-तरह के इवेंट आर्गेनाइज करके सुर्खियों में रहने वाली शुभम शिक्षण संस्थान और उसकी कर्ताधर्ता महुआ मजुमदार के आगे अच्छे-अच्छे अफसर की बोलती बंद हो जाती है ।
यही वजह है कि यह महिला शराब बंदी आन्दोलन में भी प्रमुख किरदार निभाते दिखती है तो शराब परोसने वाली पार्टी के लिए भी इसे लाईसेंस मिल जाता है । कवर्धा में भी इसकी वजह से हंगामा मच चुका है ।
रमन का सच...
झालियायारी बलात्कार कांड में विपशी कांग्रेस के तेवर से भाजपा सकते में रही । इस घटना पर अजीत जोगी ने जिस अंदाज में मुख्यमंत्री रमन सिंह पर हमला किया उसका जवाब किसी के पास नहीं था । रामविचार नेताम जैसे दमदार मंत्री का भी गला भर आया लेकिन मुख्यमंत्री रमन सिंह राजनीति के मंजे खिलाड़ी की तरह अड़े रहे । विपक्ष ने जब मुख्यमंत्री के नहीं जाने पर सवाल उटाये तो डॉ. साहब ने कह दिया पीडि़त छात्राओं व उनके परिजनों से मिल चुका हूँ । अब मुख्यमंत्री ने कह दिया तो बात खतम । आखिर मुख्यमंत्री झूठ तो कहेंगे नहीं । दो माह बाद भी फास्ट ट्रेक अदालत में मामला नहीं गया है । सीएम साहब ने कह दिया कि फास्ट ट्रैक में सुनवाई होगी । अब विपक्ष तो कहेंगे ही लेकिन चुनावी साल में जिला बनाने का जश्र भी तो जरूरी है ।
धरम का अधर्म...
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के सबसे चहेते माने जाने वाले विधानसभा अध्यक्ष धरम लाल कौशिक इन दिनों परेशान है इसकी वजह विधानसभा सचिव देवेन्द्र वर्मा है । कहा जाता है कि देवेन्द्र के कारनामों के चलते कई अखबार वाले नाराज है यहां तक कि कांग्रेस ही नहीं सत्ता पंक्ष के कई विधायक व मंत्री भी इस मामले को लेकर शिकायत कर चूके है लेकिन कौशिक की दिक्कत यह है कि वे चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि देवेन्द्र वर्मा की ताकत के आगे वे बेबस है ऐसे में देवेन्द्र वर्मा का गुस्सा उन पर उतरने लगा है और चुनावी साल में यह गुस्सा कहीं भारी न पड़ जाये ।