बिलासपुर के एसपी रतनलाल डांगी देश के संभवत: पहले एसपी होंगे, जिन्हें शहर में रहना नहीं भाता। उन्होंने जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर कोनी ग्राम पंचायत के आमतौर पर सूनसान रहने वाले इलाके में अपना ठिकाना बनाया है। जाहिर है, एसपी का बंगला अपने-आप में कंट्रोल रुम से कम नहीं होता, और उस इलाके के दो-तीन किलोमीटर के सराउंडिंग के लोग अपने को सुरक्षित समझते हैं। अब, एसपी ही शहर से बाहर रहेगा, तो पोलिसिंग का अंदाजा आप लगा सकते हैं। लेकिन कप्तान को बोले कौन। आईजी अशोक जूनेजा ने उनको इशारा किया था। नए आईजी राजेश मिश्रा को पता चला तो वे भी आवाक रह गए। अब, ऐसे में लोगबाग चुटकी क्यों न लें। कह रहे हैं.....डांगी साब, लंबे समय तक कोरबा में एसपी रहे हैं और अब कोरबा नही ंतो कोरबा रोड ही सही। मगर इससे पोलिसिंग का तो बाजा बज रहा है। न्यायधानी, अपराधधानी में तब्दील होती जा रही है।
उसेंडी चले ननकी की राहवन मंत्री विक्रम उसेंडी राज्य के दूसरे ननकीराम कंवर हो गए हैं, जिनकी अपने ही महकमे में कोई सुनवाई नहीं हो रही है। पता चला है, वन मुख्यालय-अरण्य तो उन्हें एकदम भाव नहीं दे रहा। आईएफएस अफसर मोरगन को प्रशासन और एके द्विवेदी को वाइल्ड लाइफ से हटाने के लिए उसेंडी दसियों नोटशीट भेज चुके होंगे। पर अफसर उसे कूड़ेदान में डाल दे रहे हैं। उसेंडी की स्थिति मार्च के बाद ज्यादा खराब हुई है, जब अरण्य और मंत्रालय के नौकरशाहों के बीच के डोर मजबूत हुए। कमोवेश, ऐसी ही हालत गृह मंत्री ननकीराम कंवर की भी है। फर्क इतना ही है, ननकीराम फट पड़ते हैं और उसेंडी में उतना डेसिंग नहीं है।
बैजेंद्र नया खेल एन. बैजेंद्र कुमार सीएम के प्रींसिपल सिकरेट्री के साथ आवास पर्यावरण, जनसंपर्क और न्यू रायपुर तो देखहीरहे हैं इसके साथ, अपरोक्ष तौर पर आजकल एक नए रोल में भी हैं। किरदार है, राज्य के युवा आईएएसकोप्रशासन के गुर समझाने का। बैजेंद्र के सुझाव पर ही अब कलेक्टर बनने से पहले या एकाध जिला करचुकेअफसरों को राजधानी में पोस्ट किया जा रहा है। ताकि, वे सिस्टम को नजदीक से देखसकें.....उसकीपेचीदगियों से वाकिफ हो सकें......विधानसभा की अहमियत को जान सकें। अमित कटारियाबैजेंद्र के पहलेस्टूडेंट थे। आरडीए में सीईओ रहने के बाद वे अब रायगढ़ कलेक्टर हैं। इसके बाद एलेक्स पालमेनन, एसप्रकाश और हिमांशु गुप्ता को राजधानी बुलाया गया है। बैजेंद्र का मानना है, सिस्टम को समझ लेनेऔरराजधानी में तप जाने के बाद, आईएएस बढिय़ां ढंग से जिले में काम कर सकेंगे। ठीक है, बैजेंद्र सर।
महापौर का मोह...लगता है महापौर बनने के बाद भी किरण मयी नायक का कोर्ट का मोह नहीं छुट पाया है। हर बात पर कानून का दरवाजा खटखटाने को लेकर अब तो निगम के गलियारे से लेकर चौक चौराहों पर चुटकुले सुनाये जाने लगा है। बजबजाती नालियां हो या भयंकर मच्छर चर्चा जब भी चलती है लोग कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने का सलाह ही नहीं देते बल्कि यह कहते भी नहीं चुकते कि एक नि मच्छरों के खिलाफ भी जनहित याचिका लग ही जायेगी।
अब सभापति के अविश्वास प्रस्ताव को कोर्ट द्वारा स्वीकृत नहीं करने पर लोग कहने लगे है कानून की ऐसी जानकारी का क्या फायदा ?
दयाल दास पर दयावैसे तो प्रदेश भर में आरक्षण कटौति को लेकर सतनामी समाज नाराज है लेकिन सरकार के मंत्री दयाल दास बघेल को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क तो इस बात से भी नहीं पड़ता कि उनकी कुछ नहीं चलती। सरकार का हिस्सा होने के बाद भी उन्हें खनिज माफियाओं की शिकायत इसलिए लिखित में करनी पड़ती है कि मुख्यमंत्री के पास खनिज विभाग है ।
सीधी कार्रवाई की बजाय शिकायत करने की वजह से विधानसभा में भी उनकी किरकिरी हुई लेकिन यहां भी कोई फर्क नहीं पड़ा। तभी तो कहा जाता है कि छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा । वैसे सबसे कम बजट भी दयाल दास बघेल को ही दिया गया है ।
अकेले पड़े अमितेष शुक्ल खानदार के राजनैतिक उतराधिकारी और राजिम के विधायक अमितेष शुक्ल की दिक्कत यह है कि वे राजिम कुंभ के नाम पर हो रहे फर्जीवाड़े के खिलाफ कुछ नहीं कर पा रहे हैं । सरकार की नीति के चलते यहां खुले आम शराब बिक रहे हैं और भ्रष्टाचार का खेल चल रहा है। विधानसभा तक में अपनी आवाज उठा चुके अभितेष अब समझने लगे है कि कुंभ मामले में कांग्रेस से भी उनकी सहयोग क्यों नहीं मिल रहा है आखिर बिरजू की बांसूरी के सुर के कई कांग्रेसी कायल है ऐसे में उन्हें अकेले कुंभ समारोह के बहिष्कार का निर्णय लेना पड़ा।
महंत का खेल...अपनी गुड़ाखू और गुरूमुख प्रेम की वजह से चर्चा में रहने वाले केन्द्रीय राज्य मंत्री चरणदास महंत इन दिनों हर हाल में खबरों में बने रहना चाहते हैं । तभी तो स्वयं को मुख्यमंत्री की दौड़ में बनाये रखने उन्होंने उम्र का सियासी दांव खेल दिया लेकिन दावं खेलते समाज वे भूल गए कि खूद भी 60 के करिब पहुंच चुके है । और कहीं उनका यह उम्र वाला बयान सढियाने की वजह न बन जाये