रमन का मन ...
मुख्यमंत्री बनने के बाद तीन बार अलग-अलग क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके डॉ. रमन सिंह ने इस बार राजनांदगांव से ही चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी है । चुनाव जीतने की तैयारी में पुत्र अभिषेक को भी लगा दिया है । लेकिन इस बार राह आसान नहीं है । राजनांदगांव के दिग्गज भाजपाई, अशोक शर्मा, खूब चंद पारख और लीलाराम भोजवानी की अलग खिचड़ी पक रही है ऐसे में जिस तरह की खबरें आ रही है वह कालिख पूते चेहरे के लिए बेचैन करने वाला हे अब देखना है कि इस बार वे राजनांदगांव से ही चुनाव लड़ेगे या पहले की तरह फिर कोई क्षेत्र संभालेगे ।
सुनील की कौन सुने ?
1979 बैच के आई एएस अधिकारी सुनील कुमार ने जब छत्तीसगढ़ में मुख्यसचिव का पद संभाला तो उनकी योग्यता, ईमानदारी और सादगी के कसीदे लोगों के बीच चर्चा में थे लेकिन जिस तरह से दागी अफसरों को महत्वपूर्ण पदो पर बिठाया जा रहा है उसके बाद तो चर्चा यह होने लगी है कि आखिर ये क्या हो गया है । उनकी चुप्पी को लेकर जिस तरह की चर्चा है उसके बाद तो यही निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि उनकी कोई नहीं सुन रहा है ।
सुपर मुख्यमंत्री
कहने को तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह है लेकिन प्रशासनिक हलकों में चल रही चर्चा पर भरोसा करें तो यहां एक सुपर मुख्यमंत्री भी है । जी हाँ. मुख्यमंत्री के अर्जा सचिव अमन सिंह को ही सुपर मुख्यमंत्री कहा जा रहा है । अपनी नियुक्ति को लेकर विवाद में रहने वाले अमन सिंह की धाक के सैकड़ों किस्से गली मोहल्ले में सुनाई पडऩे लगा है किस्सों में अब यह भी जोड़ा जा रहा है कि जोगी शासन के हीरो आर एल एस यादव को कैसे रातो रात भागना पड़ा था ।
पटेल की उठा पटक .............
यह तो सूत न कपास जुलाहों में लठ्ठम-लठ्ठा की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना मुख्यमंत्री बनने कांग्रेस में इस तरह की उठापटक अभी से शुरू नहीं हो जाती । भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मुहिम चलाने की बजाय पार्टी में ही मुख्यमंत्री के दावेदारों के खिलाफ चल रही उठा पटक में जब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल शामिल हुए और दिल्ली तक निपटाने की शिकायत हुई तो कांग्रेस की किरकिरी होना स्वाभाविक है ।
सौदान बने सौदागर ............
कहा जाता है कि भाजपाई को सत्ता तक पहुंचाने और सत्ता का नकेल अपने हाथ में लेने आर एसएस ने संगठन मंत्री का पद ईजाद किया है लेकिन छत्तीसगढ़ में सौदान सिंह को लेकर जिस तरह की चर्चा छिड़ रही है वह न तो आर एसएस के लिए ठीक है और न ही भाजपा के भविष्य के लिए उचित माना जा सकता है । इन दिनों सौदान सिंह के महल नुमा घर की जिस तरह से चर्चा चल रही है और इसके चित्र भाजपाईयों द्वारा बांटे जा रहे है उससे तो उन्हें सौदागर कहने वालों की कमी नहीं है । कहा जा रहा है सौदान सिंह कभी भी सरकार के लिए मुसिबत बन सकते हैं ?
छत्तीसगढिय़ा कहां गये...
वैसे तो राजधानी की महापौर किरण नायक की मुसिबतें तो उनके महापौर बनने के बाद से ही शुरू हो गई थी भी सरकार के साथ कर्मचारियों को लेकर पंगा हो रहा है तो कभी इंडोर स्टेडियम में कब्जे को लेकर उन्हें कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है । पार्टी संगठन से भी उनका विवाह सभापति बनाने को लेकर जो शुरू हुआ था वह थमने का नाम नहीं ले रहा है। शहर कांग्रेस अध्यक्ष इंदर चंद घाड़ीवाल से तो उनका छत्तीस का आंकड़ा था ही अब पाटा कांड के बाद से वे मोती लाल वोरा समर्थकों के निशाने पर आ गये है।
इतने पर भी उनकी मुसिबतें कम नहीं हो रही है और उनमें विरोधी अब उनका प्रचार छत्तीसगढिय़ा विरोधी नेता के रूप में करने लगे है, विरोधियों को कहना है कि छत्तीसगढिय़ा राजनीति की वकालत करने वाली महापौर को गैर छत्तीसगढिय़ा मनोज मंडावी को अध्यक्ष बनाने की क्या मजबूरी है। क्या कांग्रेस के तीन दर्जन पार्षदों में उन्हें छत्तीसगढिय़ा नजर नहीं आता। देखना है किरण मयी नायक के पास क्या जवाब होगा?
मुख्यमंत्री बनने के बाद तीन बार अलग-अलग क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके डॉ. रमन सिंह ने इस बार राजनांदगांव से ही चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी है । चुनाव जीतने की तैयारी में पुत्र अभिषेक को भी लगा दिया है । लेकिन इस बार राह आसान नहीं है । राजनांदगांव के दिग्गज भाजपाई, अशोक शर्मा, खूब चंद पारख और लीलाराम भोजवानी की अलग खिचड़ी पक रही है ऐसे में जिस तरह की खबरें आ रही है वह कालिख पूते चेहरे के लिए बेचैन करने वाला हे अब देखना है कि इस बार वे राजनांदगांव से ही चुनाव लड़ेगे या पहले की तरह फिर कोई क्षेत्र संभालेगे ।
सुनील की कौन सुने ?
1979 बैच के आई एएस अधिकारी सुनील कुमार ने जब छत्तीसगढ़ में मुख्यसचिव का पद संभाला तो उनकी योग्यता, ईमानदारी और सादगी के कसीदे लोगों के बीच चर्चा में थे लेकिन जिस तरह से दागी अफसरों को महत्वपूर्ण पदो पर बिठाया जा रहा है उसके बाद तो चर्चा यह होने लगी है कि आखिर ये क्या हो गया है । उनकी चुप्पी को लेकर जिस तरह की चर्चा है उसके बाद तो यही निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि उनकी कोई नहीं सुन रहा है ।
सुपर मुख्यमंत्री
कहने को तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह है लेकिन प्रशासनिक हलकों में चल रही चर्चा पर भरोसा करें तो यहां एक सुपर मुख्यमंत्री भी है । जी हाँ. मुख्यमंत्री के अर्जा सचिव अमन सिंह को ही सुपर मुख्यमंत्री कहा जा रहा है । अपनी नियुक्ति को लेकर विवाद में रहने वाले अमन सिंह की धाक के सैकड़ों किस्से गली मोहल्ले में सुनाई पडऩे लगा है किस्सों में अब यह भी जोड़ा जा रहा है कि जोगी शासन के हीरो आर एल एस यादव को कैसे रातो रात भागना पड़ा था ।
पटेल की उठा पटक .............
यह तो सूत न कपास जुलाहों में लठ्ठम-लठ्ठा की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना मुख्यमंत्री बनने कांग्रेस में इस तरह की उठापटक अभी से शुरू नहीं हो जाती । भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मुहिम चलाने की बजाय पार्टी में ही मुख्यमंत्री के दावेदारों के खिलाफ चल रही उठा पटक में जब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल शामिल हुए और दिल्ली तक निपटाने की शिकायत हुई तो कांग्रेस की किरकिरी होना स्वाभाविक है ।
सौदान बने सौदागर ............
कहा जाता है कि भाजपाई को सत्ता तक पहुंचाने और सत्ता का नकेल अपने हाथ में लेने आर एसएस ने संगठन मंत्री का पद ईजाद किया है लेकिन छत्तीसगढ़ में सौदान सिंह को लेकर जिस तरह की चर्चा छिड़ रही है वह न तो आर एसएस के लिए ठीक है और न ही भाजपा के भविष्य के लिए उचित माना जा सकता है । इन दिनों सौदान सिंह के महल नुमा घर की जिस तरह से चर्चा चल रही है और इसके चित्र भाजपाईयों द्वारा बांटे जा रहे है उससे तो उन्हें सौदागर कहने वालों की कमी नहीं है । कहा जा रहा है सौदान सिंह कभी भी सरकार के लिए मुसिबत बन सकते हैं ?
छत्तीसगढिय़ा कहां गये...
वैसे तो राजधानी की महापौर किरण नायक की मुसिबतें तो उनके महापौर बनने के बाद से ही शुरू हो गई थी भी सरकार के साथ कर्मचारियों को लेकर पंगा हो रहा है तो कभी इंडोर स्टेडियम में कब्जे को लेकर उन्हें कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है । पार्टी संगठन से भी उनका विवाह सभापति बनाने को लेकर जो शुरू हुआ था वह थमने का नाम नहीं ले रहा है। शहर कांग्रेस अध्यक्ष इंदर चंद घाड़ीवाल से तो उनका छत्तीस का आंकड़ा था ही अब पाटा कांड के बाद से वे मोती लाल वोरा समर्थकों के निशाने पर आ गये है।
इतने पर भी उनकी मुसिबतें कम नहीं हो रही है और उनमें विरोधी अब उनका प्रचार छत्तीसगढिय़ा विरोधी नेता के रूप में करने लगे है, विरोधियों को कहना है कि छत्तीसगढिय़ा राजनीति की वकालत करने वाली महापौर को गैर छत्तीसगढिय़ा मनोज मंडावी को अध्यक्ष बनाने की क्या मजबूरी है। क्या कांग्रेस के तीन दर्जन पार्षदों में उन्हें छत्तीसगढिय़ा नजर नहीं आता। देखना है किरण मयी नायक के पास क्या जवाब होगा?
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